वैसे तो देश में बहने वाली हर नदी का अपना अलग इतिहास है. लेकिन अयोध्या की सरयू नदी इसलिए खास है क्योंकि इसी नदी में भगवान श्रीराम ने जल समाधि ली थी. इस नदी का इतिहास भगवान राम के अवतरण से भी पुराना है.
सैकड़ो सालों के वनवास के बाद प्रभु श्री राम अयोध्या में अपने मंदिर में विराजमान होने के लिए तैयार हैं. 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या की श्री राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का नेतृत्व करेंगे. ऐसे में सरयू नदी का जिक्र ना हो, यह तो हो ही नहीं सकता. रामायण की गाथाओं में सरयू नदी का विशेष महत्व है.
आगे आप जानेंगे कि कहां से शुरू होकर अयोध्या पहुंचती है सरयू नदी, भगवान के वनवास से जुड़ी कहानी. कुछ प्रचलित कथाएं तो आपको हैरान कर देेंगी...
कहां से शुरू होकर अयोध्या पहुंचती है सरयू
भौगोलिक दृष्टि (Geographical perspective) से देखा जाए तो सरयू शारदा नदी की ही एक सहायक नदी है. इसे उत्तर प्रदेश के कई स्थानों पर सरजू भी कहा जाता है. यह नदी उत्तराखंड में शारदा नदी से अलग होकर उत्तर प्रदेश की भूमि के माध्यम से अपना प्रवाह जारी रखती है. इसलिए यह उत्तर प्रदेश की आबादी के लिए पानी का एक प्रमुख स्रोत है. सरयू नदी मुख्य रूप से हिमालय की तलहटी से निकलती है और शारदा नदी की एक सहायक नदी बन जाती है. यही नहीं उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थलों के बीच से गुजरती हुई यह नदी अगले 350 किमी में बहती है. सरयू नदी उत्तर प्रदेश में सबसे प्रमुख जल मार्गों में से एक है.
मानव जाति की अशुद्धियां धोती है सरयू
सरयू नदी का उल्लेख प्राचीन हिंदू शास्त्रों जैसे वेद और रामायण में मिलता है. यह गंगा नदी की सात सहायक नदियों में से एक है और इतनी पवित्र मानी जाती है कि यह मानव जाति की अशुद्धियों को धो देती है.
सरयू किनारे राम की पैड़ी की प्रचलित कथा
राम की पैड़ी को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है, कहा जाता है कि एक बार जब लक्ष्मण जी ने सभी तीर्थों में दर्शन करने का मन बनाया तो श्रीराम ने अयोध्या में सरयू किनारे तट पर खड़े होकर कहा कि जो व्यक्ति सूर्योदय से पूर्व इस स्थल पर सरयू में स्नान करेगा. उसे समस्त तीर्थ में दर्शन करने के समान पुण्य प्राप्त होगा.
भगवान के वनवास की साक्षी है सरयू
कहते हैं जब भगवान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण वनवास के लिए निकले तो वह सरयू के किनारे-किनारे ही जंगल की ओर गए थे. बाद में, लंका पर विजय प्राप्त कर भगवान इसी रास्ते से अयोध्या पहुंचे और रामराज जी की स्थापना हुई.