Baba Saheb Bhimrao Ambedkar: डॉ. भीमराव अंबेडकर पर गृहमंत्री अमित शाह की टिप्पणी के बाद से सियासत गरमाई हुई है. संसद से लेकर सड़क तक घमासान मचा हुआ है. नौबत यहां तक आ गई कि संसद भवन में धक्का-मुक्की हुई, जिसमें बीजेपी सांसदों को चोट भी आई. हालांकि, हम यहां बाबा साहेब पर हो रही राजनीति पर बात नहीं करेंगे, हम बाबा साहेब के उन आखिरी 24 घंटों के बारे में बात करेंगे, जो उन्होंने अपने निधन से पहले बिताए. 


6 दिसंबर, 1956 को संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर का निधन हो गया था. जीवन भर भारत के शोषितों और कमजोर तबके लिए संघर्ष करने वाले बाबा साहेब के आखिरी 24 घंटों और उनके अंतिम शब्दों के बारे में उनकी पत्नी सविता अंबेडकर (माईसाहेब) ने विस्तार से लिखा है. 


बाबा साहेब के साथ थीं माईसाहेब


बाबा साहेब की पत्नी माईसाहेब उनके आखिरी वक्त में साथ ही थीं. उन्होंने इन अंतिम 24 घंटों के बारे में विस्तार से जानकारी दी है. माईसाहेब ने लिखा है कि निधन से एक दिन पहले यानी 5 दिसंबर को बाबा साहेब सुबह 8.30 बजे सोकर उठ गए थे. बाबा साहेब ने माई साहेब के साथ चाय पी और लॉन में बैठकर कुछ बातें कीं. इसी दौरान बाबा साहेब के सचिव नानकंद रत्तू उनके पास आ गए और चाय पीने के बाद वे दफ्तर के लिए रवाना हो गए. माई साहेब आगे लिखती हैं कि बाबा साहेब ने अखबार पढ़े, इसके बाद उन्हें दवाएं और इंजेक्शन दिए गए. दोपहर करीब साढ़े बारह बजे बाबा साहेब लाइब्रेरी में बैठकर अपनी किताब 'द बुद्धा एंड हिज धम्मा' की प्रस्तावना लिख रहे थे, जब माईसाहेब ने उन्हें लंच के लिए बुलाया. बाबा साहेब ने लंच किया और सोने चले गए. 


बाबा साहेब के आखिरी शब्द


माई साहेब अपनी किताब में लिखती हैं कि शाम को बाबा साहेब ने जैन पुजारियों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की. उनके विदा लेने के बाद वह मन ही मन में 'बुद्धम शरणम् गच्छामि' का पाठ करना शुरू कर दिया. माई साहेब के अनुसार, जब भी बाबा साहेब अच्छे मूड में होते थे तो वे बुद्ध वंदना और करीब के दोहे का पाठ करते थे. माईसाहेब आगे लिखती हैं कि रात का खाना खाने के बाद बाबा साहेब ने कबीर का दोहा 'चलो कबीर तेरा भवसागर डेरा' गाया और छड़ी का सहारा लेकर अपने बेडरूम की तरफ चल पड़े. 


और चले गए बाबा साहेब


माईसाहेब ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि बाबा साहेब को देर रात तक लिखने-पढ़ने की आदत थी. हालांकि, वह उस दिन साढ़े ग्यारह बजे ही सोने चले गए. यही रात बाबा साहेब की जिंदगी आखिरी रात साबित हुई और 6 दिसंबर को बाबा साहेब का महापरिनिर्वाण हो गया. बाबा साहेब के निधन की खबर पूरे देश में आग की तरह फैली और हर कोई सदमें में आ गया. इसके बाद उनके पार्थिव शरीर को मुंबई ले जाया गया, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया. 


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