Bangladesh Crisis: जिन्ना की इस एक गलती से ईस्ट पाकिस्तान टूटकर बन गया था बांग्लादेश, इतनी लंबी चली थी जंग
पश्चिमी पाकिस्तान के लोग मानते थे कि बांग्ला भाषा पर हिंदुओं का असर है, इस वजह से वो इसे अपनाने या इंपॉर्टेंस देने को तैयार नहीं थे. इसकी झलक 1948 में दिखी जब जिन्ना ने संसद में ये कहा.
बांग्लादेश में आज सेना ने शेख हसीना सरकार का तख्तापलट कर दिया. शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दिया और उसके तुरंत बाद देश छोड़ दिया. फिलहाल वो भारत में हैं, लेकिन कुछ ही दिनों में वो किसी और देश में चली जाएंगी. चलिए आज हम आपको बताते हैं कि कैसे जिन्ना की एक गलती की वजह से पूर्वी पाकिस्तान आज का बांग्लादेश बन गया.
14 अगस्त 1947 को जब पाकिस्तान अस्तित्व में आया तो वह दो प्रमुख क्षेत्रों में बंटा. पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान. आबादी के लिहाज से पूर्वी पाकिस्तान जो अब का बंग्लादेश है, पश्चिमी पाकिस्तान से आगे था. लेकिन शक्ति और विकास के लिहाज से पश्चिमी पाकिस्तान आगे था. जिन्ना यहीं रहते थे. बांग्लादेश के पाकिस्तान से अलग होने की कहानी जो भी हो, लेकिन उसकी पटकथा भाषा के आधार पर ही लिखी गई थी.
दरअसल, पूर्वी पाकिस्तान में देश की 56 फीसदी आबादी रहती थी, जो बांग्ला बोलती थी. यहां के लोग चाहते थे कि पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा उर्दू के साथ-साथ बांग्ला भी हो. लेकिन जिन्ना और पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों को ये मंजूर नहीं था.
जिन्ना की एक गलती और टूट गया पाकिस्तान
बांग्लादेश के इतिहास पर रिसर्च करने वाले डच प्रोफेसर विलियम वॉन शिंडल अपनी किताब 'ए हिस्ट्री ऑफ़ बांग्लादेश' में लिखते हैं कि पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद उत्तर भारत के लोगों का वर्चस्व उभरकर सामने आने लगा. ये संसद से लेकर भाषा तक था. शिंडल लिखते हैं कि पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में विवाद की पहली वजह भाषा ही बनी. दरअसल, पश्चिमी पाकिस्तान के लोग मानते थे कि बांग्ला भाषा पर हिंदुओं का असर है, इस वजह से वो इसे अपनाने या इंपॉर्टेंस देने को तैयार नहीं थे. इसकी झलक 1948 में दिखी.
1948 फरवरी में जब पाकिस्तान के असेंबली में एक बंगाली सदस्य ने प्रस्ताव रखा कि असेंबली में उर्दू के अलावा बांग्ला का भी इस्तेमाल होना चाहिए, तो जिन्ना भड़क गए. पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम मोहम्मद अली जिन्ना ने संसद में कहा कि पाकिस्तान उपमहाद्वीप के करोड़ों मुसलमानों की मांग पर बना है और मुसलमानों की भाषा उर्दू है. इस वजह से ये जरूरी है कि पाकिस्तान की एक कॉमन भाषा हो जो सिर्फ उर्दू हो सकती है.
भाषा के लिए आंदोलन
जिन्ना ने अपनी ये बात सिर्फ पाकिस्तान की संसद में ही नहीं रखी. बल्कि जब वह पूर्वी पाकिस्तान के दौरे पर गए तो वहां भी उन्होंने दो टूक कहा कि पाकिस्तान की एक ही भाषा है और रहेगी और वो उर्दू है. इस बात से पूर्वी पाकिस्तान लोग सहमत नहीं थे, धीरे-धीरे ये आग बढ़ी और छात्रों ने भाषा के लिए आंदोलन शुरू कर दिया. इस आंदोलन में कई छात्रों की जान गई और फिर पूर्वी पाकिस्तान के आजादी की चिंगारी मशाल बन गई. इसी मशाल की आग ने और भारत के साथ ने 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को एक नए देश 'बांग्लादेश' का रूप दिया.