फेसबुक पर रिएक्ट करना हो या फिर व्हाट्सएप पर प्यार जताना हो...दिल वाली इमोजी सबके लिए सबसे बेस्ट ऑप्शन होती है. लेकिन अब सवाल उठता है कि जब असली दिल का आकार इस दिल से बिल्कुल अलग होता है तो फिर ये दिल कहां से आया. इस दिल के आकार का इतिहास क्या है और इस दिल के आकार को पहली बार किसने बनाया. इससे भी बड़ा सवाल ये है कि दिल का आकार ऐसा ही क्यों बनाया गया, अगर असली दिल की तरह दिल का आकार नहीं बनाया गया तो उसे कोई भी आकार दिया जा सकता है, लेकिन आखिर ऐसी क्या वजह थी की दिल इस आकार का बनाया गया? आज इस आर्टिकल में हम आपको इन्हीं सवालों से जुड़े जवाब देंगे.


कैसे बना दिल का डिजाइन?


जिस दिल को हम लोग प्यार जताने के लिए इस्तेमाल करते हैं, वो इंसान के असली दिल से बिल्कुल अलग है. दरअसल, जिस दिल का इस्तेमाल हम सदियों से प्यार के निशानी के तौर पर करते आए हैं, वो असल में एक पौधे के बीज से आया है. ये पौधा सिल्फियम का था. एक यूनानी इतिहासकार और भूगोलवेत्ता हेरोडोटस ने अपनी किताब हिस्टोरिया IV.169 में इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि इस पौधे के बीजों का इस्तेमाल गर्भनिरोधकर के तौर पर किया जाता था. अब आते हैं मूल सवाल पर कि आखिर दिल का आकार कैसे बना. दरअसल, इस पौधे के बीजों का आकार उसी दिल के आकार जैसा है जिसका इस्तेमाल आप और हम किसी के प्रति प्यार दिखाने के लिए करते हैं.


ये डिजाइन इतना लोकप्रिय कैसे हुआ


कई कहानियों में दावा किया जाता है कि आज से सदियों पहले जब शादी से पहले लड़के और लड़की के बीच यौन संबंध स्थापित हो जाते थे...तब लड़की को अनचाहे प्रेग्नेंसी से बचाने के लिए लड़के उन्हें ये बीज भेजते थे. धीरे-धीरे इस बीज को ही प्यार की निशानी मानी जाने लगी और लोग इस सिल्फियम के बीज के आकार को ही दिल का आकार मानने लगे और उसे जगह जगह बानने लगे. हालांकि, ये कहानी सोशल मीडिया और कुछ वेब पोर्टल पर छपी खबरों पर आधारित है...हम इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करते हैं.


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