बसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती को समर्पित है. हिंदू धर्म में देवी मां सरस्वती को ज्ञान, कला और संगीत की देवी माना जाता है. इस दिन लोग मां सरस्वती की विशेष पूजा अर्चना करते हैं. इतना ही नहीं पूजा के दौरान पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं. वहीं बंगाल में एक ऐसी प्रथा है, जो बाकी राज्यों से अलग है. बंगाली लोग सरस्वती पूजन के दिन पूजा से पहले बेर नहीं खाते हैं. आज हम आपको बताएंगे कि इसके पीछे क्या मान्यता है.


क्यों नहीं खाते बेर ?


बंगाल के लोग सरस्वती पूजा या बसंत पंचमी से पहले बेर नहीं खाते हैं. बसंत ऋतु का फल होने के कारण बेर बसंत पंचमी के आसपास ही बाजारों में आता है.लेकिन इसका भोग सबसे पहले देवी सरस्वती को लगाया जाता है और इसके बाद प्रसाद के रूप में बेर खाए जाते हैं. बंगाली लोगों को मानना है कि इस शुभ दिन से पहले बेर खाने का अर्थ है देवी सरस्वती का अपमान करना होता है. वहीं बंगाल के कुछ घरों में सरस्वती पूजा सम्पन्न होने के बाद शाम को पारंपरिक बेर का अचार तैयार किया जाता है. 


ग्रंथों में उल्लेख 


ब्राह्मण संहिता और रामायण जैसे कई पुराने ग्रंथों में भी बेर का उल्लेख मिलता है. रामायण की कहानी में शबरी ने श्री राम को जंगली बेर का फल दिया था. इसके अलावा भगवान विष्णु का संबंध भी बेर के पेड़ से जुड़ा माना जाता है. श्री विष्णु को संस्कृत में बद्री कहा जाता है. सांस्कृतिक महत्व होने के बावजूद भी बंगाल में सरस्वती पूजा से पहले बेर खाना सही नहीं माना जाता है. 


बंगाल में सरस्वती पूजा का महत्व


सरस्वती पूजा बंगाल के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है. बता दें कि इस त्योहार की तैयारी कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती है. इस दिन बंगाली लोग अपने घरों में वीणावादिनी मां सरस्वती की मूर्तियां स्थापित करते हैं. बता दें कि ताजे पीले और सफेद फूल और बेर आदि प्रसाद चढ़ाए जाते हैं. 


 


ये भी पढ़ें: क्या सही में दुनिया की पूरी जनसंख्या से ज्यादा यू-ट्यूब के डाउनलोड्स हैं? ये है सच