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खाने में सिर्फ 10 आइटम, मेहमान होंगे 100... पहले भी 10 बार आ चुका है शादी में कम खर्चे वाला बिल!

ये पहली बार नहीं है जब किसी सदन में शादी के फिजूल खर्ची को लेकर बिल पेश हुआ हो. इससे पहले भी 11 बार ऐसा हो चुका है. सबसे पहले साल 1988 में सांसद सुरेश पचौरी ने राज्यसभा में ये बिल पेश किया था.

भारत में शादियां जिस तरह से होती हैं, कई देशों में तो वैसे त्योहार भी नहीं मनाए जाते. देश में किसी औसत आय वाले व्यक्ति के घर में भी शादी होती है तो लाखों का खर्च हो जाता है. वहीं जब ये शादी किसी अपर मिडिल क्लास फैमिली में होता है तो ये खर्च करोड़ों में हो जाता है. लेकिन अब शायद ऐसा ना हो पाए. लोकसभा में हाल ही में एक नया विधेयक पेश हुआ है, जिसमें शादी में आने वाले मेहमानों की संख्या और उसमें परोसे जाने वाले तरह तरह के व्यंजनों की सीमा तय की जाएगी. इसके साथ ही किसी नवविवाहित जोड़े को दिए जाने वाले तोहफों पर होने वाले खर्च पर भी लगाम लगाने की बात की गई है. कुल मिलाकर कहें तो यह अध्यादेश अगर पारित हो जाता है तो शादियों में होने वाले फिजूल खर्ची पर रोक लग सकती है. हालांकि, ये पहली बार नहीं है इससे पहले भी कई बार शादियों पर फीजूल खर्ची को लेकर बिल पेश हुए हैं. चलिए आपको बताते हैं ये बिल पहले के बिल से कितना अलग है.

इस बार के बिल में क्या है?

बिल में क्या है इससे पहले जानिए कि इस बिल का नाम क्या है? दरअसल, इस बिल का नाम है 'विशेष अवसरों पर फिजूलखर्ची रोकथाम विधेयक 2020'. यह बिल जनवरी 2020 में कांग्रेस सांसद जसबीर सिंह गिल ने पेश किया था. संसद में अब इसी बिल को चर्चा के लिए रखा गया. इस बिल में प्रावधान है कि शादी में दूल्हा और दुल्हन दोनों के परिवारों से आमंत्रित मेहमानों की संख्या 100 से अधिक नहीं होनी चाहिए. वहीं शादी में परोसे गए व्यंजनों की संख्या भी 10 से अधिक नहीं होनी चाहिए. जबकि नवदंपत्ति को दिए गए उपहारों का मूल्य 2,500 रुपये से अधिक नहीं होना चाहिए. यानी कुलमिलाकर ये बिल अगर पास हो गया तो बहुत से परिवार उस खर्च के बोझ से बच जाएंगे जो उन्हें ना चाहते हुए भी समाज को देखते हुए करना पड़ता है.

पुराने बिल में क्या था?

ये पहली बार नहीं है जब किसी सदन में शादी के फिजूल खर्ची को लेकर बिल पेश हुआ हो. इससे पहले भी 11 बार ऐसा हो चुका है. सबसे पहले साल 1988 में सांसद सुरेश पचौरी ने राज्यसभा में ये बिल पेश किया था. इस बिल का नाम था 'The Curtailment of Expenditure on Marriages Bill,1988'.  इसके बाद साल 1996 में सरोज खपर्दे ने भी ऐसा ही एक बिल पेश किया. इस तरह से 2000 में गंगासनेद्रा सिडप्पा बसवराज ने लोकसभा में ये बिल पेश किया था. फिर 2005 संबासिव रायापति ने भी लोकसभा में ऐसा ही बिल पेश किया था. 2005 ही प्रेमा करियप्पा ने भी राज्यसभा में ऐसा ही एक बिल पेश किया था. वहीं 2011 में सांसद पीजे कुरियन और फिर सांसद अखिलेश दास गुप्ता ने भी राज्यसभा में ऐसा ही एक बिल पेश किया था.

वहीं 2011 में ही सासंद महेंद्र सिंह चौहान ने भी लोकसभा में ऐसा ही एक बिल पेश किया था. ये सभी बिल लैप्स्ड हो गए थे. जबकि, साल 2016 में कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन ने संसद में The Marriages (Compulsory Registration and Prevention of Wasteful Expenditure) Bill, 2016 बिल पेश किया था. ये अभी भी पेंडिंग है. इसके बाद साल 2017 में गोपाल चिनय्या शेट्टी ने भी लोकसभा में ऐसा ही बिल जिसका नाम था The Prevention of Extravagance and Unlimited Expenditure on Marriages Bill, 2017 बिल को लोकसभा में पेश किया था. खासबात ये है कि इन सभी बिलों में मूल बात यही लिखी थी कि कैसे शादी के फिजूल खर्ची को कम किया जा सके.

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