आधुनिक समय में जीवन आसान होने और सभी चीजों की उपलब्धता होने के बावजूद भी आज की इस महंगाई में खर्च मैनेज कर पाना मुश्किल है. आज के समय में हमें जहां 50 हजार से 70,000 रुपए तक की मंथली सैलरी भी कम पड़ जाती है, ऐसे में लोग डबल इनकम के अवसर की तलाश करते हैं. सोचिए यदि आज के समय में सभी चीजें होने के बाद भी ये हाल तो फिर मुगल काल में लोग कैसे रहते होंगे, जिस समय खाने-पीने से लेकर जीवन यापन के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं थे. 


खासकर, मुगल राजाओं को अपनी सेना रखने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता था. राजा अपनी सेना को सैलरी के तौर पर कुछ पैसे भी देते थे और जरूरत के सामान भी उपलब्ध करते थे. ताकि उनकी सेना को दिक्कत न हो और युद्ध के लिए उनकी सेना मजबूत रहे. ऐसे में क्या आप जानते हैं मुगल शासन काल में कर्मचारी और सैनिकों की सैलरी कितनी होती थी? आइए जानते हैं... 


दरअसल, मुगल काल में कर्मचारियों को मनसबदार कहा जाता था. यह एक ऐसा ग्रुप था, जिसमें कई धर्म के लोग शामिल थे. इसमें अफगानी, भारतीय मुसलमान, राजपूत और तुर्की को भी शामिल किया गया था. इन सभी का अपना अपना काम होता था और जिसकी जहां जरूरत होती थी, वहां पर तैनात किया जाता था. 


कितनी मिलती थी सैलरी? 


मुगल काल में सैनिकों की सैलरी की बात करें तो पद में छोटे सिपाहियों को ₹400 महीना दिया जाता था. हरम में तैनात दासियों को ₹1500 महीना दिया जाता था. बाकी के अन्य सिपाहियों और कर्मचारियों को उनके पद के हिसाब से हर महीने तनख्वाह मिलते थे. बड़े सैनिकों को ज्यादा तो सेना में अधिकारी को उससे ज्यादा पैसा दिया जाता था. सेना में सबसे ज्यादा सैलरी सेनापति की होती थी, जो हर राज्य में अलग अलग थी. 


बीरबल और जहांगीर को कितनी मिलती थी सैलरी?


अकबर के दरबार में बीरबल उनके नौ रत्नों में से एक थे. बीरबल की हर सलाह पर अकबर अमल करते और उसे लागू करने का आदेश भी देते थे, राज्य में किसी भी तरह की परेशानी हो बीरबल आसानी से सुलझा देते. ऐसे में अकबर के दरबार में बीरबल की एक खास भूमिका थी. आप को भी यह बात जान के हैरानी होगी कि बीरबल को आखिर कितनी सैलरी मिलती थी? बीरबल को अकबर के शासनकाल में हर महीने 16000 रुपये मिलते थे. बीरबल अकबर के दरबार में सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाले कर्मचारियों में से एक थे.


जबकि अकबर के शहजादे सलीम (जहांगीर) को 700 चांदी के सिक्के सैलरी के तौर पर दिए जाते थे. सैलरी से लेकर चांदी के सिक्के राजकोषीय खजाने में से दिए जाते थे और राजकोषीय खजाने में पैसा राज्य के लोगों से वसूले गए कर से आता था. राजकोषी खजाने का आंकलन मुगल शासन काल में हर साल किया जाता था.


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