Black Magic: दुनिया में इतने लोग हैं अंधविश्वासी! नई स्टडी में हुए कई हैरान करने वाले खुलासे
Black Magic: वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के अमेरिकी अर्थशास्त्री बोरिस ग्रेशमैन ने अपने इस शोध में पाया कि 1.4 लाख लोगों में से लगभग 40 फीसदी लोग काला जादू जैसी शक्तियों में विश्वास रखते हैं.
Black Magic: बहुत से लोग ऐसे हैं जो जादू-टोना में विश्वास रखते हैं. विज्ञान इस चीज को नहीं मानता है, लेकिन दुनियाभर में जादू-टोने को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. एक नई स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है. दुनिया में बहुत सारे लोग काला जादू, श्राप, दुआ-बद्दुआएं आदि में विश्वास रखते हैं. उनका विश्वास होता है कि कुछ लोगाें में सुपर नैचुरल पावर यानी अलौकिक या अप्राकृतिक शक्तियां होती हैं और किसी को नुकसान पहुंचाने की क्षमता भी.
स्टडी में हुआ खुलासा
PLoS-ONE जर्नल में अमेरिका के एक अर्थशास्त्री की यह स्टडी प्रकाशित हुई है. इस स्टडी के हिसाब से, कुछ लोगों के पास ऐसी शक्तियां होती हैं जिनसे वे मंत्र, श्राप आदि का इस्तेमाल कर किसी दूसरे को नुकसान पहुंचा सकते हैं. आपको शायद जाकर हैरानी होगी, लेकिन इस स्टडी के मुताबिक लोगों के बीच जादू-टोना की मान्यता के पीछे केवल अंधविश्वास या अशिक्षा ही कारण नहीं है, बल्कि इसके और भी कई कारण पाए गए हैं. नई स्टडी में सामने आया कि जादू-टोने में विश्वास रखने वालों की संख्या उम्मीद से कहीं अधिक है.
10 में से 4 लोगों को है जादू-टोना में विश्वास!
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के अमेरिकी अर्थशास्त्री बोरिस ग्रेशमैन ने अपने इस शोध के लिए 95 देशों और कुछ इलाकों से 1.4 लाख लोगों के विस्तृत आंकड़े इकठ्ठा किए. जिसमें से 40 फीसदी लोगों का मानना था कि उनको जादू-टोना, काला जादू आदि में विश्वास है.
कितने लोग हैं अंधविश्वासी!
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जादू टोने से जुड़ी मान्यताएं भी अलग-अलग हैं. जहां, स्वीडन में केवल 9 फीसदी लोगों को जादू टोना आदि में विश्वास हैं.वहीं, ट्यूनीशिया में यह आंकड़ा 90 फीसदी के पार था. ग्रेशमैन ने अपनी इस रिसर्च में पाया कि जादू टोना को लेकर लोगों का अलग अलग तरह के लोगों और समूहों में विश्वास है. इन लोगों में अच्छे खासे पढ़े लिखे और ऐसी लोग भी शामिल थे जिनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक है. इसका मतलब यह यह है कि जिनके बारे में यह समझा जाता है कि वह इस सब में विश्वास नहीं रखते होंगे, वो लोग भी जादू-टोना को मानते हैं. अलग-अलग देशों में इसके पीछे सांस्कृतिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक कारण हो सकते हैं.
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