क्या अतुल सुभाष की बीवी निकिता सिंघानिया का लाई डिटेक्टर टेस्ट कर सकती है पुलिस, ऐसा किन हालात में किया जाता है?
बेंगलुरु के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष के सुसाइड मामले में पुलिस उनकी पत्नी का लाई डिटेक्टर टेस्ट कर सकती है. जानिए क्या होता है ये टेस्ट और कोर्ट में इसको लेकर क्या है नियम.
बेंगलुरु के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष के सुसाइड मामले की जांच बेंगलुरु पुलिस कर रही है. अतुल सुभाष सुसाइड मामले में उनकी पत्नी, सास और साले तीन आरोपी न्यायिक हिरासत में हैं. बेंगलुरु पुलिस पूछताछ कर रही है और 31 दिसंबर को तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया जाना है. अब सवाल ये है कि क्या पुलिस अतुल सुभाष की पत्नी निकिता सिंघानिया का लाई डिटेक्टर टेस्ट कर सकती है. आज हम आपको लाई डिटेक्टर टेस्ट यानी पॉलीग्राफ टेस्ट के बारे में आपको बताएंगे.
क्या है मामला
बेंगलुरु के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष ने 9 दिसंबर को सुसाइड किया था. अतुल सुभाष ने मरने से पहले एक वीडियो और लेटर में मरने की वजह पत्नी और उनके परिवार को बताया है. बता दें कि 4 पन्नों के लेटर में अतुल सुभाष ने बताया कि निकिता तीन साल पहले घर छोड़कर गई थी, जिसके बाद वो फिर कभी नहीं लौटी है. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि न तो वो खुद बात करती थी और न ही बेटे से बात करवाती थी. उनके इस सुसाइड नोट से ये भी पता चला है कि पत्नी निकिता सिंघानिया से उनकी आखिरी बार क्या बात हुई थी.
सभी आरोपी गिरफ्तार
अतुल सुभाष ने अपनी मौत का कारण अपनी पत्नी और उसके परिवार को बताया था. जिसके बाद बेंगलुरु पुलिस ने सुसाइड मामले में उनकी पत्नी, सास और साले तीन आरोपी न्यायिक हिरासत में लिया हैं. जानकारी के मुताबिक बेंगलुरु पुलिस पूछताछ कर रही है और 31 दिसंबर को तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया जाना है. सूत्रों के मुताबिक पुलिस इस मामले में पॉलीग्राफ टेस्ट भी कर सकती है.
क्या होता है लाई डिटेक्टर टेस्ट
बता दें कि लाई डिटेक्टर टेस्ट के जरिए सच और झूठ का पता लगाने की कोशिश की जाती है. पॉलीग्राफ टेस्ट को ही लाई डिटेक्टर टेस्ट के रूप में भी जाना जाता है. यह इस तरह का परीक्षण में व्यक्ति द्वारा प्रश्नों के उत्तर देते वक्त उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापता है. यह परीक्षण यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि क्या व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ बोल रहा है.
कैसे होता है पॉलीग्राफ टेस्ट?
पॉलीग्राफ टेस्ट में परीक्षण के दौरान व्यक्ति से प्रश्न पूछे जाते हैं और उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापा जाता है. वहीं यदि कोई व्यक्ति झूठ बोलता है, तो उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाएं बदल जाती हैं, जैसे हृदय गति बढ़ जाती है, रक्तचाप बढ़ जाता है और उसकी सांस लेने की दर में तेजी आ जाती है. बता दें कि पॉलीग्राफ टेस्ट के परिणामों को एक ग्राफ पर दिखाया जाता है, जो यह दर्शाता है कि व्यक्ति की शारीरिक प्रतिक्रियाएं प्रश्नों के उत्तर देने के दौरान कैसे बदली हैं.
पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए सहमति जरूरी?
अब सवाल ये है कि कोई भी जांच एजेंसी किसी भी इंसान का टेस्ट करा सकती है? इसका जवाब है नहीं. दरअसल पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए आरोपी की सहमति जरूरी होती है. यदि आरोपी सहमति नहीं देता है, तो उसे सुरक्षा एजेंसियां बाध्य करके पॉलीग्राफ टेस्ट नहीं करा सकती हैं. लेकिन अमूमन आरोपी खुद को निर्दोष साबित करने के लिए पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए हामी भर देते हैं. आरोपी कई बार कोर्ट में खुद को सही साबित करने के लिए पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए सहमति दे ही देते हैं.
ये टेस्ट कोर्ट में मान्य नहीं
कई कारणों की वजह से पॉलीग्राफ टेस्ट और नार्को टेस्ट वैज्ञानिक रूप से 100% सफल साबित नहीं हुए हैं. हालांकि जांच एजेंसियां इन्हें प्राथमिकता देती हैं. शायद उन्हें इससे सबूत जुटाने में मदद मिलती है. कोई भी कोर्ट पॉलीग्राफ टेस्ट की रिपोर्ट को नहीं मानता है, हालांकि कोर्ट पॉलीग्राफ टेस्ट में पूछताछ के दौरान आरोपी द्वारा किसी जगह और सबूत को मान्य मानता है.
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