एक वक्त था जब घरों में सिर्फ पीले वाले बल्ब लगते थे. लेकिन जैसे जैसे तकनीक का लेवल बढ़ा वैज्ञानिकों ने एक नए किस्म के बल्ब की खोज की जिसे सीएफएल यानी कॉम्पैक्ट फ्लोरेसेंट लैम्प कहा जाता है. इसकी रोशनी सफेद होती है, जिसमें थोड़ा नीला रंग भी होता है. ये रात में जब जलते हैं तो ऐसा लगता है जैसे दिन हो गया हो.


इसके साथ ही ये पीले बल्ब की तुलना में बिजली भी कम खाते हैं. यही वजह है कि सरकार ने भी इसे प्रमोट किया. लेकिन हर चीज के दो पहलू होते हैं, एक तरफ जहां इस सीएफएल के इतने फायदे हैं तो वहीं दूसरी ओर इसके नुकसान भी हैं. कुछ रिसर्च में सामने आया है कि इसकी रोशनी से इंसानों में कैंसर जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं.


क्या कहता है रिसर्च?


इजरायल के हफीफा विश्वविद्यालय के जीवविज्ञान के प्रोफेसर अब्राहम हाइम की एक रिसर्च रिपोर्ट 'क्रोनोबॉयलॉजी इंटरनेशनल' नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई है. इस रिपोर्ट में प्रोफेसर अब्राहम हाइम कहते हैं कि सीएफएल से निकलने वाली नीली रोशनी जब हमारे शरीर पर पड़ती है तो उससे हमारे शरीर में बन रहे मेलाटोनीन नाम के हारमोन कम होने लगते हैं.


दरअसल, मेलाटोनीन वो हारमोन है जो स्तन कैंसर से महिलाओं को बचाता है. इसी रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि जो महिलाएं रात में सीएफएल बल्ब जला कर सोती हैं उनमें प्रोस्टेट कैंसर का खतरा 22 फीसदी ज्यादा रहता है.


जर्मनी के वैज्ञानिक क्या कहते हैं?


सीएफएल को लेकर जर्मनी के वैज्ञानिकों ने भी कई गंभीर सवाल उठाए हैं. जैसे फेडरेशन ऑफ जर्मन इंजीनियर्स के आंद्रेस किचनर का कहना है कि सीएफएल बल्ब स्ट्रीन, फेनोल और नेप्थालीन जैसे जहरीले पदार्थ छोड़ते हैं. इसके साथ ही जब ये जलते हैं तो इनके आसपास इलेक्ट्रॉनिक स्मॉग जमा हो जाता है.


ये इंसानी शरीर के लिए बेहद घातक होते हैं. इसलिए इन बल्बों का इस्तेमाल बेहद चतुराई से करना चाहिए. खासतौर से इन बल्बों का उपयोग ऐसी जगह पर बिल्कुल नहीं करना चाहिए जहां हवा के आने जाने का रास्ता ना हो. और सिर के पास तो इन बल्बों को भूल कर भी नहीं जलाना चाहिए.


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