Capsule Fact: ज़रा सा मौसम बदलते ही हमारी तबियत खराब होने लग जाती है. ऐसे में हम दवाएं खाने के लिए मजबूर हो जाते हैं. मजबूर शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया गया है, क्योंकि जब सीजन बदलने के साथ ही बहुत सारे हेल्थ इशूज सामने आने लगते हैं तो न चाहते हुए भी दवाएं खानी पड़ती हैं. कई बार तो दिक्कत इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि बड़े-बड़े कैप्सूल भी खाने पड़ जाते हैं. क्या आपने कभी इन कैप्सूल को ठीक से नोटिस किया है? अगर किया है तो देखा होगा कि ये कैप्सूल अधिकतर दो अलग रंगों में होते हैं जिनमें एक बड़ा और एक हिस्सा छोटा होता है.
यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि हम कोटिंग वाले कैप्सूल की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि प्लास्टिक जैसे खोल वाले कैप्सूल को बात कर रहे हैं. प्लास्टिक जैसे बोला है तो इसका यह अर्थ नहीं कि कैप्सूल सच में प्लास्टिक के हैं. इस शब्द का इस्तेमाल केवल बेहतर समझाने के लिए किया गया है. वैसे तो दवाओं को खाना लोगों को पसंद नहीं होता, क्योंकि वो कड़वी होती हैं, लेकिन इन दो रंग वाले कैप्सूल में कोई स्वाद नहीं होता है, इसलिए लोग इन्हें आसानी से खा जाते हैं. आज की इस खबर में हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैप्सूल के दो अलग रंग के होने के पीछे क्या लॉजिक है?
कैप्सूल बनाने का प्रोसेस
इसके पीछे का लॉजिक समझने के लिए हमें पहले इसके प्रोडक्शन प्रोसेस को समझना पड़ेगा. आपने देखा होगा कि कैप्सूल दो अलग साइज में होते हैं. ऊपर वाला हिस्सा ज्यादा बड़ा होता है. इसमें कैप्सूल के बड़े हिस्से में ज्यादा और छोटे हिस्से में कम कंटेंट होता है. इससे स्पष्ट होता है कि कैप्सूल का छोटा वाला हिस्सा कैप होता है और बड़ा वाला हिस्सा कंटेनर. अब जब कैप्सूल की भराई की जाती है तो एक मशीन में बहुत छोटे-छोटे छेदों में एक हिस्सा रख दिया जाता है और फिर उसमें दवा डाली जाती है
अंतर करना होगा मुश्किल
दावा की फिलिंग होने के बाद उसमें कैप लगाई जाती है. अब यह काम हाथ से नहीं किया जाता है, क्योंकि कैप्सूल का प्रोडक्शन तो लाखों की संख्या में होता है. ऐसे में अगर दोनों पार्ट्स एक ही रंग के बना दिए जाएंगे तो उनमें अंतर करना काफी मुश्किल हो जाएगा. सिर्फ साइज के आधार पर एक बार में ये पता लगाना मुश्किल होगा कि कौन सा पार्ट कंटेनर है और कौन सा कैप.
यही वजह है कि कैप्सूल को या तो दो अलग रंग में तैयार किया जाता है या दोनों पार्ट्स के बीच कुछ ऐसा अंतर रखा जाता है, जिससे कंटेनर और कैप की आसानी से पहचान की जा सके. कई कंपनियां अपने कैप्सूल के लिए किसी एक रंग का चुनाव कर लेती हैं.
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