भारत धार्मिक आस्थाओं का देश है. यहां पेड़ पौधों से लेकर पहाड़ नदियां और हर चीज की पूजा होती है जिससे जीवन जुड़ा होता है. यहां लोग अपने ईश्वर के साथ-साथ उनकी सवारी की भी पूजा करते हैं. जैसे भगवान गणेश की सवारी है चूहा तो कई जगह चूहे की पूजा होती है. उसी तरह से माता लक्ष्मी की सवारी है उल्लू, इसलिए उसे भी पवित्र माना जाता है. मां दुर्गा की सवारी है शेर तो इसलिए शेर की भी मूर्ति मंदिरों में लगी होती है.
लेकिन बिल्ली तो किसी भगवान की सवारी नहीं है? फिर हिंदुस्तान में एक जगह इसकी पूजा क्यों होती है, जबकि किस्सों कहानियों में तो बिल्ली को हमेशा अशुभ ही माना गया है. बिल्ली अगर आपका रास्ता काट दे तो अशुभ माना जाता है, इस टोटके से तो आप हर रोज दो चार होते होंगे. हालांकि, कई लोग ऐसे भी हैं जो बिल्लियों को पालते हैं और उनका मानना है कि यह सब अंधविश्वास है उससे ज्यादा कुछ नहीं. तो चलिए जानते हैं कहां हो रही है बिल्लियों की पूजा.
1000 साल से हो रही है बिल्लियों की पूजा
यह जगह कर्नाटक के मांड्या जिले में है. यहां एक गांव है जिसे बेक्कालेले कहा जाता है. इस गांव में लोग पिछले 1000 साल से बिल्लियों की पूजा करते रहे हैं. यहां रहने वाले लोगों की आस्था है कि बिल्ली देवी का अवतार है, इसलिए यहां पूरे विधि विधान से उनकी पूजा होती है. दरअसल, इस गांव के लोग बिल्लियों को देवी मंगम्मा का रूप मानते हैं.
बिल्लियों का है सम्मान
बेक्कालेले गांव में यह मंदिर पिछले 1000 सालों से जस का तस बना हुआ है. पूजा पद्धति भी उसी तरह से निभाई जा रही है. इस गांव के लोग देवी मंगम्मा को अपनी कुलदेवी मानते हैं. यही वजह है कि उनके रूप बिल्लियों को अगर गांव में कोई नुकसान पहुंचाता है तो उसे गांव से निकाल दिया जाता है. यहां तक कि इस गांव में अगर किसी बिल्ली की मौत हो जाती है तो उसे पूरे रीति-रिवाज के साथ दफनाया जाता है.
इसकी शुरुआत कैसे हुई
गांव के लोग बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले यह पूरा गांव बुरी ताकतों से परेशान था. जब बुरी ताकतों का आतंक चरम पर पहुंच गया तो माता देवी मंगम्मा ने बिल्ली का रूप धारण किया और गांव के अंदर से बुरी ताकतों को मार भगाया. बाद में जब देवी मंगम्मा अचानक से इस गांव से गायब हो गईं तो उन्होंने यहां एक जगह पर निशान छोड़ा. उसी जगह बाद में उनका मंदिर बनाया गया और उसके बाद से ही लोग यहां बिल्लियों की पूजा करते हैं.
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