इंडियन रेलवे देश के सबसे बड़े परिवहन नेटवर्क्स में से एक है. यात्रियों की सुविधा के लिए रेलवे कई नई तकनीकों को अपनाने की दिशा में हमेशा काम करता है. हालांकि, मेट्रो की तरह क्यूआर (QR) टिकट सिस्टम को रेलवे स्टेशनों पर लागू करने में कुछ बड़ी चुनौतियां और कारण हैं. चलिए इसके बारे में आज विस्तार से बात करते हैं.


अलग-अलग ट्रेनों की समस्या


भारतीय रेलवे में मेट्रो के मुकाबले कई अलग-अलग प्रकार की ट्रेनें शामिल हैं. जैसे- एक्सप्रेस, सुपरफास्ट, लोकल और पैंट्री कार वाली ट्रेनें. हर ट्रेन के लिए अलग-अलग किराया और टाइम टेबल होती है. ऐसे में एक समान क्यूआर टिकट सिस्टम को लागू करना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है. वहीं मेट्रो में सीमित संख्या में स्टेशन और मार्ग होते हैं, जिससे वहां क्यूआर सिस्टम को लागू करना आसान होता है.


अलग-अलग प्रकार के टिकट की दिक्कत


रेलवे स्टेशनों पर टिकट खरीदने की प्रक्रिया में भी काफी समस्या है. जैसे- अलग-अलग यात्रियों को अलग-अलग प्रकार के टिकट खरीदने की जरूरत होती है. आसान भाषा में कहें तो कुछ लोगों को तत्काल टिकट चाहिए, कुछ लोगों को स्लीपर का टिकट चाहिए और कुछ लोगों को एसी फर्स्ट, सेकेंड और थर्ड का टिकट चाहिए होता है. ऐसे में अलग-अलग तरह की सीटों के लिए क्यूआर सिस्टम को लागू मुश्किल होगा. जबकि, मेट्रो में सबको एक ही तरह की टिकट दी जाती है.


यात्रियों की भारी संख्या भी एक चुनौती


मेट्रो में जहां यात्रियों की और स्टेशनों की संख्या कम होती है, वहीं रेलवे में यात्रियों और स्टेशनों की संख्या बहुत ज्यादा होती है. ऐसे में भारतीय रेलवे में क्यूआर टिकट सिस्टम को लागू करना आसान नहीं होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि यात्रियों के लिए यह सुनिश्चित करना कि क्यूआर कोड्स में धोखाधड़ी न हो, रेलवे के लिए एक बड़ी चुनौती है.


मोटा खर्च होगा


अकेले दिल्ली मेट्रो की बात करें तो यहां क्यूआर सिस्टम लाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च हो गए. अब सोचिए कि पूरे देश में रेलवे किस हद तक फैला हुआ है. ऐसे में हर रेलवे स्टेशन पर क्यूआर टिकट सिस्टम लागू करने के लिए कितने हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं. यही वजह है कि फिलहाल देश में हर रेलवे स्टेशन पर क्यूआर टिकट सिस्टम को लागू करना मुश्किल है.


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