चंद्रयान-3 से भारत समेत दुनियाभर को कई उम्मीदे हैं. दरअसल, इससे पहले जब भारत ने चंद्रयान-1 भेजा था, जब भारत ने पता कर लिया था चांद पर पानी हो सकता है. उस दौरान चंद्रयान ने चांद पर बर्फ होने की बात कही थी, जिसके बाद नासा ने भी इसके आधार पर चांद पर पानी होने की पुष्टि की थी. अब चंद्रयान-3 से भी उम्मीद लगाई जा रही है कि वो चांद के साउथ पोल से पानी के साक्ष्य ढूंढ सकता है और पानी का पता कर सकता है. अगर भारत इस बार फिर चांद पर पानी को लेकर कोई खुलासा करता है तो दुनिया भारत की इस रिसर्च को फॉलो करेगा.


लेकिन, चांद पर पानी की उम्मीदों को लेकर ये भी कहा जा रहा है कि वैसे चांद पर जो पानी निकलेगा, वो पीने योग्य नहीं होगा. ऐसे में सवाल है कि आखिर वहां किस तरह का पानी होगा, उस पानी का क्या इस्तेमाल होगा और पानी मिलने को लेकर अभी की क्या कहा जा रहा है. 


क्या सच में चांद पर है पानी?


चंद्रयान-3 का विक्रम साउथ पोल पर उतरने वाला है और नासा की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऑर्बिटर्स से जो टेस्ट किए गए हैं, उसके आधार पर ये कहा जाता है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर भारी मात्रा में बर्फ है. ऐसे में बर्फ बर्फ के सुबूत मिले तो पानी भी मिल सकता है. इससे पहले भी कुछ रिपोर्ट में पानी होने की बात सामने आई थी. पहले बताया जा रहा था कि चांद पर 600 बिलियन किलो पानी हो सकता है, जो करीब ढ़ाई लाख स्विमिंग पूल के बराबर है.


क्या पीने लायक है पानी?


अब सवाल ये है कि चांद पर जिस पानी के होने की बात की जा रही है, क्या वो सही में पीने योग्य हो सकता है. दरअसल, चांद पर सूरज की ओर उत्सर्जित किए हुए प्रोटोन चांद पर सतह पर आते रहते हैं. माना जा रहा है कि इनमें से कुछ प्रोटोन चांद की मिट्टी में ऑक्सीजन के अणु के साथ मिलकर पानी बन जाते हैं. लेकिन ये वैसा पानी है, जो पृथ्वी पर पीने वाली पानी है और ये पानी भी बहुत कम है. इसका नतीजा ये है कि चांद की मिट्टी अभी भी पृथ्वी के रेगिस्तानों की तुलना में कई गुना सूखी है. 


फिर उस पानी का क्या होगा?


जब चांद पर मिलने वाली पानी पीने योग्य नहीं है तो फिर इसका किस चीज में इस्तेमाल किया जाता है. वैसे अभी तो सिर्फ इस पानी को सिर्फ रिसर्च के काम में ही लिया जा सकता है. इसके बाद जब पानी पर रिसर्च होती है तो ये पता चल सकता है कि आखिर पानी का क्या भविष्य हो सकता है. इसके साथ ही इस पानी को सौलर एनर्जी का इस्तेमाल करके इलेक्ट्रोलिसिस के जरिए इससे कई तत्वों को अलग किया जा सकता है और चांद पर जीवन के बारे में विचार किया जा सकता है. इसके अलावा पानी पर कई अन्य रिसर्च से इसके तत्वों से रॉकेट फ्यूल के लिए हाइड्रोजन, ऑक्सीजन आदि उपलब्ध करवाई जा सकती है और इससे पाए जाने वाले अन्य मिनरल्स के बारे में भी जानकारी मिल सकती है. 


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