चंद्रयान-3 चांद की जमीन पर उतरने के लिए तैयार है और जल्द ही चंद्रयान चांद की जमीन पर लैंडिंग करेगा. दरअसल, चंद्रयान-2 के मिशन में लैंडिंग के दौरान कुछ दिक्कत आ गई थी, जिसके बाद मिशन फेल हो गया था. कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि उस दौरान स्पीड पर सही कंट्रोल ना होने की वजह से चंद्रयान-2 रोवर से सही से निकल नहीं पाया. इसके अलावा चांद पर जिस जगह चंद्रयान को लैंड करना था, वहां की जमीन भी ठीक ना होने की वजह से दिक्कत हुई थी. मगर चंद्रयान-3 में वैज्ञानिकों की टीम इसके लिए तैयार है.
दरअसल, पहले सैटेलाइट की स्पीड कई हजार किलोमीटर प्रति घंटा होती है और वो काफी तेज चांद की ऑर्बिट तक पहुंचते हैं. लेकिन, लैंडिंग के वक्त स्पीड बहुत कम होती है ताकि अच्छे से लैंडिंग हो. ऐसे में सवाल है कि आखिर किसी भी सैटेलाइट की स्पीड को किस तरह से इतना कम किया जाता है और इनकी स्पीड में किस तरह से ब्रेक लगाए जाते हैं. तो आज हम आपको बताते हैं कि आखिर इनकी स्पीड को कैसे कम किया जाता है और किस मैकेनिज्म के जरिए स्पीड पर कंट्रोल किया जाता है.
कैसे कंट्रोल होती है स्पीड?
बता दें कि अंतरिक्ष में स्पीड को कम करने के लिए थ्रस्ट का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें इंजन को थ्रस्ट दिया जाता है और उसके जरिए स्पीड को कम किया जाता है. बताया जाता है कि चंद्रयान-2 के दौरान ज्यादा थ्रस्ट की वजह से वो अस्थिर हो गया. इसके साथ ही थ्रस्ट के बाद ये क्राफ्ट तेजी से घूमने लगा, इस वजह से अच्छे से लैंडिग ठीक नहीं हो पाई थी. ऐसे में इस बार थ्रस्ट को लेकर खास प्लान तैयार किया गया है.
बता दें कि शुरुआत में चंद्रयान को 36000 किलोमीटर प्रति घंटे के हिसाब से थ्रस्ट किया गया था, फिर ऑर्बिट स्पीड 6000 किलोमीटर प्रति घंटा थी. अब लैंडिंग के वक्त ये स्पीड 10.8 किलोमीटर प्रति घंटा या ≤ 3.0 m/sec होना जरुरी है, जिसके बाद ही अच्छे से लैंडिंग हो पाएगी. ऐसे में थ्रस्ट देकर इंजन को कंट्रोल किया जाता है.
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