चंद्रयान-3 चांद पर अपनी लैंडिंग की तैयारी में है. काफी तेज स्पीड से चांद की ऑर्बिट में पहुंचने के बाद अब इसकी स्पीड को कम करने का काम किया जा रहा ताकि इसकी सेफ लेंडिंग करवाई जा सके. चंद्रयान -2 के फेल हो जाने के बाद चंद्रयान-3 की लेंडिंग को काफी खास माना जा रहा है. बताया जा रहा है कि चंद्रयान के इस पूरे मिशन में 10 मिनट का एक ऐसा वक्त आने वाला है, जिस पर पूरे मिशन की सफलता टिकी है. अगर उस वक्त कोई गलती हो जाती है तो पूरा मिशन गड़बड़ हो सकता है.
ऐसे में जानते हैं कि आखिर चंद्रयान-3 मिशन के वो कौनसे 10 मिनट हैं, जिसे काफी खास माना जा रहा है. साथ ही जानते हैं कि इस 10 मिनट में क्या होगा और इस बार इसका खास ख्याल क्यों रखा जा रहा है...
चंद्रयान 2 याद है?
चंद्रयान-3 के उन 10 मिनट के बारे में बताने से पहले आपको चंद्रयान-2 के बारे में बताते हैं, जिसमें भी उन खास 10 मिनट में गलती हुई थी और फिर वैज्ञानिकों को निराशा हाथ लगी थी. दरअसल, करीब 4 साल पहले 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान-2 लॉन्च किया गया और उसे 6 सितंबर को चांद की सतह पर उतरना था. उन 10 मिनट में रोवर को बाहर निकलना था और लैंडिग अच्छे से नहीं हो पाए और 7 सितंबर को तड़के पौने 3 बजे के करीब लैंडर की क्रैश लैंडिंग हो गई. ये सब खेल उन आखिर 10 से 15 मिनट में हुआ था और उस वजह से मिशन फेल हो गया.
क्यों फेल हो गया था चंद्रयान-2?
बता दें कि पहले इंजन की स्पीड को थ्रस्ट के जरिए कम किया जाता है, लेकिन ज्यादा थ्रस्ट की वजह से वो अस्थिर हो गया. इसके साथ ही थ्रस्ट के बाद ये क्राफ्ट तेजी से घूमने लगा और लैंडिंग स्पॉट ठीक ना होने की वजह से भी चंद्रयान-2 को दिक्कत हुई, इस वजह से ये फेल हो गया.
कौनसे हैं वो 10 मिनट?
दरअसल, ये 10 मिनट लैंडिंग के होते हैं. इस वक्त रोवर का अलग होना और चंद्रयान का लैंड करना शामिल है. इस वक्त इसकी स्पीड काफी कम होती है और उसे धीरे से जमीन पर उतारा जाता है. चांद की जमीन में कई गड्ढे, पहाड़ियां हैं, ऐसे में इसका सही स्थान का चयन करना भी मुश्किल होता है और सही जगह का चयन कर इसे चांद पर उतारा जाता है. लैंडिंग वाले इस वक्त के दौरान जगह का चुनाव सबसे अहम है.
बता दें कि लैंडिंग की सतह 12 डिग्री से ज्यादा टेढ़ी-मेढ़ी नहीं होनी चाहिए, वर्ना दिक्कत हो सकती है. ये धीरे धीरे चांद पर उतरता है और जब 10 मीटर की दूरी रह जाती है तो 10 से 15 सेकेंड में वो जमीन को टच कर देता है. इससे पहेल 400 मीटर की दूरी रहने पर वो डेटा लेता है और लेंडिंग के लिए स्थान चुनता है और फिर लैंड करता है.
इस बार क्या है खास?
चंद्रयान-3 में चंद्रयान-2 को गलती को सुधारा गया है और लैंडिंग साइट के लिए भी खास प्रबंध किए गए हैं. साथ ही फ्यूल को लेकर काम किया गया है और लैंडर, रोवर में पिछली सीख के साथ डिजाइन किया है ताकि इसकी सॉफ्ट लैंडिंग की जा सके.
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