चंद्रयान-3 चांद की जमीन से सिर्फ एक दिन दूर है और बुधवार को चंद्रयान भारत की ओर से चांद पर इतिहास रचेगा. 23 अगस्त शाम को चंद्रयान का लैंडर विक्रम चांद पर लैंड करेगा. आपने चंद्रयान-3 की लैंडिंग के दौरान आने वाली मुश्किलों के बारे में काफी कुछ सुना होगा और लैंडिंग को लेकर कई रिपोर्ट देखी होगी. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि आखिर विक्रम की लैंडिंग कौन करवाएगा? क्या ये लैंडिंग धरती पर बैठे वैज्ञानिक करवाएंगे या फिर लैंडिंग का पूरा काम चंद्रयान-3 खुद ही करेगा. तो जानते हैं कि आखिर लैंडिंग कौन करवाता है...
आपको बता दें कि चंद्रयान भले ही अकेला चंद्रयान-3 की कक्षा में घूम रहा हो, लेकिन इसे काफी हद तक इसरो के वैज्ञानिक ऑपरेट करते हैं. अगर लैंडिंग की बात करें तो पृथ्वी पर बैठे वैज्ञानिकों की मदद से ही विक्रम की लैंडिंग करवाई जाती है. इसके अलावा कुछ ऐसे फैसले हैं, जो चंद्रयान-3 को खुद ही चांद पर लेने होंगे, जिस पर वैज्ञानिकों का जोर नहीं रहेगा. विक्रम की कुछ मशीन अपने हिसाब से काम करती है और उन्हें ऑटो डिजिजन के लिए तैयार किया जाता है.
वैज्ञानिकों का नहीं होता पूरा कंट्रोल!
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब लैंडर चांद के करीब होता है तो चांद उन ओब्जेक्ट को अपनी ओर खिंचता है, ऐसे में लैंडर को कंट्रोल किया जाता है. इसे चांद की सतह पर तेजी से गिरने से बचाने का प्रयास किया जाता है और कंट्रोल करना काफी मुश्किल होता है. खास बात ये है कि पृथ्वी से जो भी सिग्नल लैंडर को भेजा जाता है, उसमें 1.3 सेकंड का वक्त लगता है और उतना ही आने में समय लगता है. ऐसे में सिग्नल ट्रांसफर में काफी टाइम लग जाता है, इससे पूरी तरह लैंडर पर वैज्ञानिकों का कंट्रोल नहीं होता है.
ऐसे में कोई भी अनहोनी से बचने के लिए लैंडर को भी काफी स्मार्ट बनाया गया है, जिससे विपरीत सिचुएशन में वो खुद को कंट्रोल कर लेता है. ऐसे में कहा जा सकता है कि किसी भी लैंडर की लैंडिंग में वैज्ञानिकों का काम होता है, लेकिन काफी कुछ काम ऑटोमैटिक होता है. दोनों के आपसी सिग्नल ट्रांसफर से लैंडिंग करवाई जाती है. बता दें कि चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए 90 डिग्री का कोण जरूरी है, जिसके बाद लैंडिंग और रोवर निकलने में दिक्कत नहीं होती है.
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