Chandrayaan-3 Launch: चंद्रयान मिशन-3 की लॉन्चिंग के साथ जानिए 1972 के बाद से अब तक चांद पर कोई क्यों नहीं गया
साल 2004 में अमेरिका ने एक बार फिर से प्लान किया था कि वह चांद के लिए इंसानी मिशन प्लान करेगा. लेकिन 104,000 मिलियन अमरीकी डॉलर के अनुमानित बजट के चलते इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
भारत चंद्रयान मिशन-3 के लिए पूरी तरह से तैयार है. इसरो का कहना है कि एलवीएम3एम4-चंद्रयान-3 मिशन 14 जुलाई को दोपहर के 2:35 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सततीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा. चांद की ओर भारत का यह तीसरा मिशन है. भारत ने अगर इस कोशिश में कामयाबी हासिल कर ली तो वो दुनिया का तीसरा देश बन जाएगा जिसने इस क्षेत्र में उपलब्धि हासिल कर ली है.
इससे पहले दो प्रयास कब किए गए?
आपको बता दें भारत ने इससे पहले चंद्रयान-1 को 22 अक्टूबर 2008 को लॉन्च किया था. हालांकि, 14 नवंबर 2008 को जब चंद्रयान-1 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सीमा के पास पहुंचा तो वहां वो दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इसके बाद दूसरा प्रयास 22 जुलाई 2019 को किया गया. लेकिन 2 सितंबर 2019 को चंद्रयान-2 चंद्रमा की ध्रुवीय कक्षा में चांद के चक्कर लगाते वक्त लैंडर विक्रम से अलग हो गया. लेकिन चांद की सतह से जब वह 2.1 किलोमीटर की दूरी पर था तो उसका जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया.
1972 के बाद चांद पर कोई क्यों नहीं गया?
21 जुलाई 1969 की तारीख इंसानी सभ्यता के लिए सबसे बड़ी थी. इस दिन पहली बार किसी मनुष्य ने चांद पर अपने कदम रखे थे. ये महान इंसान नील आर्मस्ट्रॉन्ग थे. इनके बाद आखिरी बार चांद पर 1972 यूजीन सेरनन गए थे. यूजीन आखिरी इंसान थे जो चांद पर गए थे. इसके बाद आज तक कोई भी इंसान चांद पर नहीं गया. अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? क्यों इसके बाद किसी भी देश नें किसी इंसान को चांद पर नहीं भेजा? इसके पीछे की वजह क्या थी?
सारा खेल पैसे का है
चांद पर 1972 के बाद किसी इंसान को ना भेजने के पीछे सबसे बड़ा कारण पैसा है. बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, लॉस एंजेलिस के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में खगोल विज्ञान के प्रोफेसर माइकल रिच कहते हैं, "चांद पर इंसानी मिशन भेजने में काफी खर्च आया था, जबकि इसका वैज्ञानिक फायदा कम ही हुआ."
दरअसल, साल 2004 में अमेरिका ने एक बार फिर से प्लान किया था कि वह चांद के लिए इंसानी मिशन प्लान करेगा. इसके लिए तत्कालिन राष्ट्रपति डब्ल्यू जॉर्ज बुश ने प्रस्ताव भी पेश किया. इसके लिए 104,000 मिलियन अमरीकी डॉलर का अनुमानित बजट भी बनाया गया. हालांकि, भारी-भरकम बजट के चलते इस प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.
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