केंद्र सरकार ने आज यानी 9 फरवरी को पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने घोषणा की है. इस घोषणा के साथ ही खासकर पश्चिम उत्तर प्रदेश समेत देशभर के किसान खुश हैं. इसकी बड़ी वजह ये है कि चौधरी चरण सिंह सिर्फ एक नेता नहीं थे, उन्हें किसानों का मसीहा भी कहा जाता था. उनके बात करने के अंदाज से सिर्फ नेता ही नहीं आम जनता भी बहुत प्रभावित होती थी. आज आपको बताएंगे कि क्यों चौधरी चरण सिंह को किंग ऑफ जाट कहा जाता था. आखिर इसके पीछे की वजह क्या थी. 


जन्म


चौधरी चरण सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के वर्तमान हापुड़ जिले के नूरपुर में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में 1902 में हुआ था. उन्होंने 1923 में विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी और 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया था. इसके बाद उन्होंने लॉ की डिग्री लेकर गाजियाबाद में वकालत भी की थी. 


राजनीतिक सफर


चरण सिंह 1929 में वकालत छोड़कर मेरठ चले गए थे और कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये थे. वे सबसे पहले 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए थे. जिसके बाद 1946, 1952, 1962 एवं 1967 में विधानसभा में छपरौली क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. विधानसभा में रहने के दौरान ही 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव रहे. इसके अलावा उन्होंने राजस्व, चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना इत्यादि विभिन्न विभागों में कार्य किया. इसके अलावा जून 1951 में उन्हें राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया एवं न्याय तथा सूचना विभागों का प्रभार दिया गया था. फिर 1952 में वे डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्री थे. अप्रैल 1959 में जब उन्होंने पद से इस्तीफा दिया, उस समय उनके पास राजस्व एवं परिवहन विभाग का प्रभार था. वहीं सी.बी. गुप्ता के मंत्रिमंडल में वह गृह एवं कृषि मंत्री (1960) थे. सुचेता कृपलानी के मंत्रिमंडल में वह कृषि एवं वन मंत्री (1962-63) रहे. उन्होंने 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया एवं 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का प्रभार संभाल लिया था.


मुख्यमंत्री तक का सफर


चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस विभाजन के बाद फरवरी 1970 में दूसरी बार वे कांग्रेस पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे.हालांकि राज्य में 2 अक्टूबर 1970 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था. उनकी पहचान एक कड़क नेता के रूप में होती थी. उन्हें प्रशासनिक कार्यों में कोई कमी बर्दाश्त नहीं होती थी. इतना ही नहीं वो भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार के बिल्कुल खिलाफ रहते थे. 


किसानों के मसीहा


उत्तर प्रदेश राज्य में भूमि सुधार का पूरा श्रेय चौधरी जी को ही जाता है. ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाले विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी. देश का खासकर किसान वर्ग उन्हें सबसे ज्यादा पसंद करता था. चौधरी जी हमेशा किसानों के हित में फैसले लेते थे. पश्चिम उत्तर प्रदेश में उन्हें किंग ऑफ जाट के नाम से भी जाना जाता है. क्योंकि चौधरी जी जिस क्षेत्र से आते हैं, वहां पर बड़ी संख्या में जाट आबादी रहती है और किसानी करती है. एबीपी न्यूज से बातचीत में शामली के रहने वाले प्रतीक ने अपने दादा को याद करते हुए बताया कि वो कहते थे कि इस देश में अगर किसानों के लिए कोई सोचता है, तो वो सिर्फ और सिर्फ हमारे चौधरी साहब हैं. 


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