क्या सही में च्युइंग गम सुअर के मांस से बनती हैं? फिर इसमें क्या क्या डाला जाता है?
Chewing Gum Making Process: च्वुइंग गम बनाने के प्रोसेस को लेकर कई तरह के फैक्ट शेयर किए जाते हैं, तो जानते इन दावों में कितनी सच्चाई है?
बच्चे हैं या फिर जवान... हर कोई च्वुइंग गम चबाना पसंद करते हैं. कई लोगों को तो काफी च्वुइंग गम इतनी पसंद होती है कि पूरे दिन उनका मुंह चलता रहता है. वैसे कई खिलाड़ी भी लगातार च्वुइंग गम खाते रहते हैं. लेकिन, कई लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें च्वुइंग गम पसंद नहीं है. वैसे च्वुइंग गम पसंद ना होने के भी कई कारण हैं, कुछ लोगों को उसे चबाना पसंद नहीं तो कुछ लोगों का मानना है कि इसे बनाने के लिए सुअर के मीट का इस्तेमाल किया जाता है. इस वजह से एक वर्ग च्वुइंग गम नहीं खाता है और सोशल मीडिया पर भी कई ऐसे मैसेज वायरल हैं, जिनमें च्वुइंग गम में सुअर का मीट होने का दावा किया जाता है.
ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि इस बात में कितनी सच्चाई है और क्या सही में च्वुइंग गम बनाने के लिए कंपनियां सुअर के मीट का इस्तेमाल करती है. तो आज हम आपको च्वुइंग गम बनाने के पूरे प्रोसेस के बारे में बताते हैं, जिसके बाद आपको पूरी कहानी समझ आ जाएगी.
क्या सही में होता है सुअर का मांस?
सबसे पहले तो आपकी क्लियर कर देते हैं कि च्वुइंग गम बनाने में में सुअर के मीट या फैट का इस्तेमाल नहीं होता है. इसके अलावा, इस प्रोसेस में सुअर के अलावा भी किसी भी जानवर के मीट का इस्तेमाल नहीं होता है. इसे सिर्फ वेज सोर्स के जरिए ही बनाया जाता है. ऐसे में अगर कोई सुअर का मीट होने की वजह से च्वुइंग गम नहीं खाते हैं तो ये गलत है.
फिर च्वुइंग कैसे बनती है?
अगर च्वुइंग बनाने के काम में आने वाले सामान की बात करें तो इसे बनाने के लिए अहम गम बेस का इस्तेमाल किया जाता है, जो पॉलीमर्स के मिक्सर, प्लास्टिसाइजर्स, फूड ग्रेड सॉफ्टनर्स के मिक्सर आदि से बनता है. इसके साथ ही इसमें स्वीटनर, सॉफ्टनर,फ्लेवरिंग, पॉलीयल कोटिंग का इस्तेमाल किया जाता है. पहले तो गम बेस को बनाया जाता है, जो काफी लचीला होता है.
इसके साथ ही इसमें ब्यूटाडाइन स्टायरिन रबर, आइसोप्रीन, पैराफीन जैसे कैमिकल का भी इस्तेमाल किया जाता है. लोगों का मानना है कि खिंचाव के लिए सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है. इसमें अलग तरीकों से मीठा और सॉफ्ट बनाया जाता है, जिसके लिए वेजिटबल ऑयल, ज्यूस आदि का भी इस्तेमाल होता है. इसमें कई तरह के वैक्स का भी इस्तेमाल होता है, हालांकि इसमें से निकले प्लास्टिक के जरिए प्रदूषण बढ़ने की बात भी कही जाती है.
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