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क्या किसी मुख्यमंत्री की पत्नी बिना चुनाव लड़े बन सकती है CM ?, जानिए क्या कहता है संविधान

राजनीति में उलटफेर बहुत आम बात है. इस बीच राजनीतिक गलियारों में चर्चा हो रही है कि झारखंड के सीएम अपना पद अपनी पत्नी को दे सकते हैं. आज हम बताएंगे कि संविधान में क्या ऐसा संभव है ?

 

राजनीति में किसी भी समय उलटफेर संभव है. इस समय ताजा मामला झारखंड की राजनीति का है. जहां बड़ा उलटफेर की संभावना दिख रही हैं. कारण ये है कि जमीन घोटाले मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ ईडी की कार्रवाई चल रही है. अटकलें लगाई जा रही हैं कि इस मामले में उन पर लगे आरोप सिद्ध हो सकते हैं. जिसका मतलब यह है कि हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जेल जाना पड़ सकता है. हालांकि इस बीच राजनीतिक गलियारों में चर्चा हो रही है कि गिरफ्तार होने से पहले सीएम सोरेन राज्य की सत्ता अपनी पत्नी को सौंप सकते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या संविधान में ऐसा कोई नियम है या नहीं. 

बिहार की राजनीति

झारखंड में जारी ये अटकलें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की याद दिलाता है. जब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने जेल जाने की आशंका के बीच पत्नी रबड़ी देवी को अपनी गद्दी सौंपी थी. आइए जानते हैं भारतीय संविधान का वो कौन सा नियम है, जो गैर-राजनीतिक व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाने की मंजूरी देता है. 

कैसे लालू की पत्नी राबड़ी देवी बनी मुख्यमंत्री?

एक ऐसा ही मामला 26 साल पहले आया था. जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने तब सबको चौंका दिया था. जुलाई 1997 में उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का नया मुख्यमंत्री घोषित कर दिया. इससे पहले तक राबड़ी देवी की पहचान केवल लालू यादव की पत्नी के तौर पर होती थी. पांचवीं क्लास तक पढ़ी राबड़ी देवी ने तब तक कोई चुनाव भी नहीं लड़ा था. इस सब के बावजूद उन्हें देश के सबसे बड़े राज्यों में से एक बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया गया. यह संविधान के अनुच्छेद 164 से मुमकिन हो पाया.

क्या है अनुच्छेद 164?

अनुच्छेद 164 में राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की नियुक्ति से संबंधित नियम दर्ज है. यह अनुच्छेद कहता है कि  मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा. इसके अलावा बाकी मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर करेंगे. राज्य मंत्रिपरिषद राज्य की विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगा. इसके अलावा किसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल उसको पद की और गोपनीयता की शपथ दिलाएंगे. वहीं कोई मंत्री अगर निरन्तर छह महीने की अवधि तक राज्य के विधान मण्डल का सदस्य नहीं है, तो उस अवधि की समाप्ति पर उसके मंत्री का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा. आसान शब्दों में कहे तो अनुच्छेद 164 (1) कहता है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करता है. मगर राज्यपाल मनमुताबिक किसी को भी मुख्यमंत्री नियुक्त नहीं करता. चुनाव के बाद, राज्यपाल बहुमत पाने वाली पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है. जीते हुए उम्मीदवार चुनते हैं कि प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा. हालांकि अनुच्छेद 164 (4) इसमें एक कंडीशन जोड़ता है. यह कहता है कि मंत्री बनने के लिए जरूरी नहीं कि वो शख्स राज्य के विधानमंडल का सदस्य हो. लेकिन मुख्यमंत्री या मंत्री बनने के बाद उस नेता को 6 महीने के अंदर चुनाव जीतकर राज्य के विधानसभा या विधानपरिषद का सदस्य बनना होगा. लेकिन अगर वो शख्स चुनाव नहीं जीत पाता है, तो उसे मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ेगा.

ये नेता चुनाव हारने पर भी बने मुख्यमंत्री

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुनाव हारने के बावजूद मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि इन नेताओं को अनुच्छेद 164 (4) के तहत 6 महीने के अंदर चुनाव जीतकर विधानमंडल का हिस्सा बनने का मौका मिला था.

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