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जहां-जहां पांव पड़े 'सैंटा' के, तहां-तहां पेड़ों का बंटाधार

हर साल क्रिसमस के समय पूरी दुनिया में लगभग 120 मिलियन यानी 12 करोड़ पेड़ काटे जाते हैं. अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में क्रिसमस के दौरान हर साल 35 से 40 मिलियन क्रिसमस ट्री बेचे जाते हैं.

कैफ़ी आज़मी साहब का एक शेर है,

"पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था,
जिस्म जल जाएंगे जब सर पे न साया होगा."

दरअसल, पेड़ इस धरती पर लगे वो खंभे हैं, जिनसे जीवन की तरंगें 24 घंटे 365 दिन लगातार फूटती रहती हैं. इस धरती पर अगर पेड़ ना हों तो यहां रहने वाला हर जीव कार्बन डाइऑक्साइड की वजह से दम तोड़ दे. ये पेड़ ही हैं जो इस जहर को शिव की तरह अपने भीतर लेते हैं और फिर जीवों को जीने के लिए अमृत यानी ऑक्सीजन देते हैं. लेकिन इसके बाद भी इन्हें पूरी दुनिया में लगातार काटा जा रहा है. खासतौर से क्रिसमस के लिए हर साल लगभग 12 करोड़ पेड़ काट दिए जाते हैं. द तत्व की एक रिपोर्ट दावा करती है कि इतने पेड़ों के कटने से लगभग 2 से 3 बिलियन किलोग्राम कार्बन फुटप्रिंट होता है.

सबसे ज्यादा पेड़ कहां काटे जाते हैं

क्रिसमस मुख्य रूप से ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों का त्योहार है. लेकिन आज इसे पूरी दुनिया में मनाया जाता है. यही वजह है कि क्रिसमस के दिन क्रिसमस ट्री की डिमांड काफी बढ़ जाती है. footprint.org की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल क्रिसमस के समय पूरी दुनिया में लगभग 120 मिलियन यानी 12 करोड़ पेड़ काटे जाते हैं. अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में क्रिसमस के दौरान हर साल 35 से 40 मिलियन क्रिसमस ट्री बेचे जाते हैं. वहीं ब्रिटेन में लगभग 8 मिलियन पेड़ों की खपत होती है. यानी अमेरिका सहित सभी यूरोपीय देशों की बात करें तो वहां हर साल क्रिसमस के दौरान लगभग 50 मिलियन पेड़ काटे जाते हैं. रूस और दूसरे एशियाई देशों में भी इस दौरान लगभग 40 मिलियन से ज्यादा क्रिसमस ट्री की खपत होती है. अकेले ऑस्ट्रेलिया में 5 से 6 मिलियन पेड़ों की कटाई क्रिसमस के दौरान की जाती है.

क्रिसमस ट्री से जुड़ा अरबों का कारोबार

क्रिसमस के लिए जो लोग असली पेड़ खरीद या काट नहीं सकते, वो बाज़ार से प्लास्टिका क्रिसमस ट्री खरीद कर लाते हैं. चीन इसे हर साल भारी मात्रा में अमेरिका और यूरोपीय देशों को एक्सपोर्ट करता है. freightwaves की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका इस क्रिसमस ट्री का सबसे बड़ा इंपोर्टर है. यानी अमेरिका इसे सबसे ज्यादा अपने देश में आयात करता है. Statista की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने 2022 में पूरी दुनिया में क्रिसमस ट्री और उससे जुड़े डेकोरेशन के लगभग 10 बिलियन डॉलर के सामान को एक्सपोर्ट किया था. इसमें अकेले अमेरिका कि हिस्सेदारी 3.17 बिलियन डॉलर की थी.

कैसे शुरू हुई थी क्रिसमस ट्री की प्रथा

भगवान यीशु के जन्मदिन पर क्रिसमस मनाते हैं, ये तो सभी जानते हैं. लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि आखिर इस दिन सदाबहार पेड़ों को काटने और उन्हें घर में सजाने की प्रथा कब शुरू हुई. चलिए आपको बताते हैं. दरअसल, क्रिसमस ट्री के लिए जिन खास पेड़ों को इस्तेमाल होता है, उन्हें सदाबहार पेड़ कहते हैं. यानी ये कभी सूखते नहीं हैं. ये पेड़ पूरे साल हरे रहते हैं. स्प्रूस, फर, डगलस फर, चीड़, देवदार, वर्जीनिया पाइन, अफगान पाइन, रेत पाइन इन्ही पेड़ों के प्रकार हैं. हिस्ट्री डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार, इन पेड़ों का इस्तेमाल शुभ कार्यों के दौरान सदियों से होता आ रहा है. प्राचीन लोग इन पेड़ों को पवित्र मानते थे. कई देशों में तो ये भी मान्यता थी कि अगर इन पेड़ों की टहनियों को घर के दरवाजे पर लटका दिया जाए तो इससे घर में बुरी आत्माएं प्रवेश नहीं कर पातीं.

हालांकि, ठोस प्रमाणों के आधार पर देखा जाए तो इस प्रथा को शुरू करने का श्रेय जर्मनी को जाता है. दरअसल, 16वीं शताब्दी के दौरान जर्मनी के श्रद्धालु ईसाई क्रिसमस के दौरान अपने घरों में सजे हुए सदाबहार पौधे लाया करते थे. जबकि, इन पेड़ों को लेकर एक कहानी प्रोटेस्टेंट सुधारक मार्टिन लूथर से भी जुड़ी है. कहा जाता है कि 16वीं सदी में ठंड की एक रात जब वह अपने घर लौट रहे थे, तो उन्होंने इन सदाबहार पेड़ों के बीच टिमटिमाते तारों को देखा. घर आकर वो अपने परिवार को भी उसी दृश्य का अनुभव कराना चाहते थे. ऐसा करने के लिए वो घर में एक सदाबहार का पेड़ लाए और उसके टहनियों पर कुछ मोमबत्तियां लगा दीं. इसके बाद से ही क्रिसमस के दिन लोग ऐसा करने लगे.

वहीं अमेरिका में इन पेड़ों से जुड़ी प्रथा कि बात करें तो शुरुआती दौर में अमेरिकी लोगों को क्रिसमस के दिन पेड़ों का इस तरह से सजाना पसंद नहीं था. 1840 तक तो इसे अमेरिका के लोग बुतपरस्त प्रतीकों के तौर पर देखते थे. दरअसल, अमेरिका में भी इन पेड़ों को जर्मनी के लोग ही लाए थे. 1747 के शुरुआती दौर में अमेरिका के पेंसिल्वेनिया में मोरावियन जर्मनों के पास उनका एक सामुदायिक पेड़ था, जो मोमबत्तियों से सजा था.

घर-घर कैसे पहुंचा ये पेड़

साल 1846 में ब्रिटिश रॉयल फैमिली की कमान रानी विक्टोरिया के हाथों में थी. रानी विक्टोरिया उन दिनों लोगों के बीच काफी लोकप्रिय थीं. वो जो चीजें करतीं, जो कपड़े पहनतीं वो फैशन बन जाता. इसी साल क्रिसमस के समय उनकी और उनके जर्मन राजकुमार, अल्बर्ट की एक फोटो को इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज में छापा गया. इस चित्र में रानी विक्टोरिया और प्रिंस अल्बर्ट अपने बच्चों के साथ क्रिसमस ट्री के चारों ओर खड़े हुए थे. ये फोटो छपते ही क्रिसमस ट्री भी फैशन में आ गया. ये फैशन ना सिर्फ ब्रिटेन और यूरोप में बल्कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक पहुंच गया.

ये भी पढ़ें: Merry Christmas: मैरी क्रिसमस का मतलब क्या होता है, हम क्यों नहीं कहते हैप्पी क्रिसमस?

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