The Beatles: ऋषिकेश से मशहूर बैंड 'Beatles' का क्या था नाता? गंगा किनारे आज भी मौजूद है इनकी छाप
उत्तराखंड के ऋषिकेश को आज पूरी दुनिया में योगनगरी के नाम से जाना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले ऋषिकेश का नाम दुनियाभर में पहुंचाने वाले बीटल्स कौन थे और उनका इस शहर से क्या नाता था?
ऋषिकेश यानी योग, आध्यात्म, ऋषि-महर्षियों का केंद्र, आश्रमों की नगरी और मां गंगा के किनारे बसा एक पवित्र शहर. लेकिन इन सबके साथ ऋषिकेश में द बीटल्स ग्रुप का जिक्र होना भी जरूरी है. क्योंकि बीटल्स के कारण ही दशकों पहले ऋषिकेश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली थी. जानिए आखिर बीटल्स कौन थे? जिनके नाम पर ऋषिकेश में आज भी बीटल्स आश्रम, बीटल्स कैफे समेत तमाम जगहें मौजूद हैं.
द बीटल्स
सवाल ये आता है कि बीटल्स कौन थे और उनका ऋषिकेश से क्या संबंध था? बता दें कि बीटल्स कोई इंसान नहीं बल्कि एक मशहूर म्यूजिक बैंड था. जिसको इंग्लैंड के लिवरपूल में जन्मे जॉन लेनन ने 1960 में बनाया था. बता दें कि जॉन लेनन अपने जीवन का पहला गाना हेल्लो लिटिल गर्ल.. लिखा था. जो 1963 में ब्रिटेन के हर शख्स के जबान पर था. जिसके बाद इसी साल द बीटल्स बैंड को उसके तीन और साथी और जॉन लेनन के दोस्त पॉल मेकार्टनी, जॉर्ज हैरिसन और रिंगो स्टार मिले थे. दुनियाभर में अपने बेहतरीन संगीत से इस बैंड को एक अलग पहचान मिली थी. बीटल्स बैंड 10 सालों तक सुपरहिट रहा था. हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 1970 आते आते ये चारों एक-दूसरे से अलग हो गए थे.
द बीटल्स कैसे आए ऋषिकेश?
द बीटल्स के ऋषिकेश आने से पहले जॉन लेनन के उस बयान को जानना भी जरूरी है, जिसकी वजह से पूरी दुनिया में उन्हें एंटी क्राइस्ट कहा जा रहा था. दरअसल 1966 में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि ‘जिसस क्राइस्ट से मशहूर वो खुद हैं’. बस क्या था इसके बाद अमेरिका समेत पूरी दुनिया में उन्हें एंटी क्राइस्ट कहा जाने लगा था और कई देशों में उनके गाने पर बैन भी लग गया था. इसके बाद लगातार बढ़ते विरोध के कारण उन्हें अपना म्यूजिक टूर छोड़कर घर लौटना पड़ा था.
शांति की तलाश में ऋषिकेश
दुनिया में लगातार विरोध के बाद बीटल्स शांति की तलाश में भारत भी आए थे. शांति की तलाश में ही वो 1968 भारत आने के बाद ऋषिकेश में महर्षि महेश योगी के पास उनके आश्रम पहुंचे थे. इस दौरान महर्षि योगी पूरी दुनिया में बीटल्स के गुरु कहलाने लगे थे. हालांकि ये दौर लंबा नहीं चला था, इस दौरान बीटल्स मेंबर्स के बीच मतभेद शुरू हो चुका था और वो एक-एक करके भारत से लौटने लगे थे. भारत से वापस जाने के बाद 1970 के वक्त तक ये बैंड टूट चुका था और सभी मेंबर्स अलग हो चुके थे. लेकिन कहा जाता है कि 1980 में लेनन की हत्या के बाद भी बीटल्स के सभी मेंबर्स महर्षि महेश योगी से जुड़े हुए थे और इसी कारण बाद में इस आश्रम का नाम बीटल्स आश्रम रखा गया. लेनन में भारत का एक गाना बहुत फेमस हुआ था, जिसमें लेनन ने कहा था जय गुरु... जय गुरु...
बीटल्स का आखिरी गाना
भारत से जाने के बाद 1970 आते-आते बीटल्स ग्रुप टूट चुका था. जिसके बाद सभी मेंबर्स अलग-अलग एल्बम निकालने में जुटे हुए थे और एक दूसरे से अलग गा रहे थे. हालांकि इस दौरान भी लेनन के लिखे गाने को पसंद किया जा रहा था. वहीं 1973 में बीटल्स के मेंबर रिंगो स्टार ने एक एल्बम निकाला, जिसके लिए जॉन लेनन ने गाना गाया था. ये आखिरी बार था, जब बीटल्स के सभी मेंबर्स के एक साथ किसी एल्बम में नजर आए थे.
लेनन की हत्या
8 दिसंबर 1980 की रात जब लेनन अपनी पत्नी के साथ न्यूयॉक वाले घर की तरफ लौट रहा था, उसी वक्त उसके ऊपर फायरिंग हुई और उसकी मौत हो गई थी. बता दें कि लेनन की हत्या उसके ही एक प्रशंसक मार्क डेविड चैपमैन ने की थी. खबरों के मुताबिक हत्यारा मार्क डेविड चैपमैन लेनन के सालों पहले दिए एंटी क्राइस्ट बयान और कुछ गानों से दुखी और गुस्से में था. जिस कारण चैपमैन ने लेनन की हत्या की थी. हालांकि कुछ रिपोर्टस में ये भी कहा जाता है कि हत्यारा चैपमैन का दिमागी संतुलन ठीक नहीं था. लेनन की हत्या के लिए उसे 20 साल की सजा भी हुई थी.
ऋषिकेश में बीटल्स
बीटल्स के ऋषिकेश आने के बाद पूरी दुनिया में ऋषिकेश को एक अलग पहचान मिली थी. आज इतने सालों के बाद भी ब्रिटेन, अमेरिकी समेत पूरी दुनियाभर के लोग शांति की तलाश में ऋषिकेश आते हैं. ऋषिकेश में बीटल्स की छाप आज भी मौजूद है. बीटल्स जिस चौरासी कुटिया आश्रम में रूके थे, आज दुनियाभर में उसे बीटल्स आश्रम के नाम से जाना जाता है. हर साल हजारों विदेशी पर्यटक इस आश्रम को देखने के लिए आते हैं. इसके अलावा ऋषिकेश में गंगा किनारे बीटल्स के नाम से कई कैफे और होम स्टे मौजूद हैं, जहां पर टूरिस्ट जाना पसंद करते हैं. आसान शब्दों में कहें तो दशकों पहले ऋषिकेश आए बीटल्स की छाप अभी भी यहां दिखती है.
ऋषिकेश का नाम कैसे पड़ा?
पौराणिक कथाओं के मुताबिक ऋषिकेश सतयुग से ही ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है. यहां स्थित प्राचीन श्री भरत मंदिर में रैभ्य ऋषि और सोम ऋषि ने भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए तपस्या की थी. जिसके बाद भगवान नारायण ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए थे. विष्णु भगवान का एक नाम हृषिकेश भी है, जिसकी वजह से इस स्थान को हृषिकेश के नाम से जाना जाता है. लेकिन आम बोलचाल में लोग इस जगह को ऋषिकेश कहने लगे हैं, यही कारण है कि अब इसे ऋषिकेश के नाम से जाना जाता है.