देश में किसी भी दोषी को सजा सुनाने के लिए कोर्ट है. किसी भी व्यक्ति द्वारा अपराध करने के बाद कोर्ट के जज द्वारा ही उसे सजा सुनाया जाता है. हालांकि कुछ क्राइम इतने बड़े होते हैं कि जज दोषियों को कई सालों की सजा या उम्रकैद तक की भी सजा सुनाते हैं. लेकिन क्या ये सच है कि जेल में सजा के दिनों को गिनने के तरीके बिल्कुल अलग हैं. आज हम आपको बताएंगे कि जेल में दिन और रात किस तरीके से गिने जाते हैं.
संविधान के नियम
बता दें कि भारतीय संविधान के मुताबिक जेल की सजा में दिन और रात को अलग अलग नहीं गिना जाता है. बल्कि भारतीय संविधान और कानून के मुताबिक जेल में 1 दिन को 24 घंटे और 1 हफ्ते को 7 दिन, 1 महीने को 30 दिन और पूरे 1 साल को 365 दिन ही गिना जाता है. सोशल मीडिया या अन्य जगहों पर जो भ्रांतियां फैली कि जेल में 12 घंटे को 1 दिन और अगले 24 घंटे को 2 दिन माना जाता है. यानी जेल में रात और दिन को अलग-अलग गिना जाता है. वहीं उम्रकैद की सजा 14 की जगह 7 साल की होती है, ये बिल्कुल गलत है.
उम्र कैद की सजा
भारतीय कानूनों को लेकर कुछ लोगों में भ्रांतियां फैली हुई है, जिसमें कुछ लोग मानते हैं कि उम्र कैद की सजा का मतलब 14 साल की सजा होती है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार यह साफ किया है कि उम्र कैद का मतलब पूरी उम्र का कैदी होता है. आसान भाषा में जब तक वो कैदी जिंदा है, तब तक वह जेल में ही रहेगा. बता दे यहां पर 14 साल से मतलब है कि उस कैदी के जेल में रहने की कम से कम अवधि 14 साल की है.
क्या 14 साल बाद हो सकती है रिहाई?
संविधान के मुताबिक राज्य सरकार के पास पावर होता है. दरअसल कैदी अगर जेल में 14 साल पूरा कर लेता है और राज्य सरकार उसे रिहा करवा सकती है. इसके लिए सरकार अदालत को सिफारिश भेजकर उसे रिहा करने की अपील कर सकती है. जानकारी के मुताबिक राज्य सरकार के पास अधिकार है कि वो कैदी को रिहा करवाने के लिए अपील कर सकती है. इसके बाद कोर्ट के जज उस कैदी के आचरण और नियमों को देखते हुए रिहा करने का आदेश दे सकते हैं.
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