Daylight Saving Time: हम दिनभर में जो भी काम करते हैं वो घड़ी में समय देखकर ही करते हैं. समय अपनी रफ्तार से चलता रहता है. दुनिया में कई ऐसे देश भी हैं, जो साल में दो बार घड़ी का टाइम सेट करते हैं. इन देशों में घड़ी का समय लगभग 1 घंटा आगे या पीछे रहता है. नहीं-नहीं, यह कोई चमत्कार नहीं है, बल्कि ऐसा जानबूझकर किया जाता है. दरअसल, ऐसा करना डेलाइट सेविंग टाइम के तौर पर समझा जाता है. वैसे इस सिस्टम को समझना कोई बड़ा मुश्किल काम नहीं है. अमेरिका समेत दुनिया के कई अन्य देशों में साल में एक बार घड़ी का टाइम 1 घंटा आगे कर दिया जाता है और फिर बाद में वापस एक घंटा पीछे कर दिया जाता है. आइए जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता है?


दिन की रोशनी का फायदा उठाना था उद्देश्य
पुराने समय में यह मानाा जाता था कि इस प्रक्रिया को अपना कर दिन की रोशनी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जा सकता है, इससे किसानों को भी अतिरिक्त कार्य के लिए समय मिल जाता था. लेकिन, समय के साथ यह धारणा बदली और अब इस सिस्टम को बिजली की खपत कम करने के मकसद से अपनाया जाने लगा है. गर्मी के मौसम में घड़ी को एक घंटा पीछे करने से दिन की रोशनी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जा सकता है. मानसिक तौर पर यह एक घंटा अधिक मिलने का कॉन्सेप्ट है.


इन देशों में होता है ये 
दिन की रोशनी का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने के लिए दुनिया के लगभग 70 देशों में यही सिस्टम अपनाया जाता है. हालांकि,  भारत और ज्यादातर मुस्लिम देशों में इस प्रैक्टिस को नहीं अपनाया जाता है. अमेरिका सहित दुनियाभर के 70.देशों में 8 महीनों के लिए घड़ी एक घंटे आगे चलती है और बाकी 4 महीने वापस एक घंटे पीछे कर दी जाती है. अमेरिका में मार्च के दूसरे रविवार को घड़ियों का समय एक घंटा आगे कर दिया जाता है और फिर नवंबर के पहले रविवार को वापस से एक घंटा पीछे कर दिया जाता है. वैसे तो अमेरिका के राज्य इस सिस्टम को मानने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य नहीं हैं, लेकिन यूरोपीय यूनियन में शामिल देश इस सिस्टम को अपनाते हैं.


डेलाइट सेविंग टाइम का फायदा
इस सिस्टम को अपनाने के पीछे वजह थी एनर्जी की खपत को कम करना, लेकिन अलग-अलग अध्ययनों में अलग-अलग आंकड़े सामने आए, इसलिए इस सिस्टम पर हमेशा बहस चलती रहती है. साल 2008 में अमेरिकी एनर्जी विभाग ने बताया था कि इस सिस्टम से करीब 0.5 फीसदी बिजली की बचत हुई, लेकिन आर्थिक रिसर्च के नेशनल ब्यूरो ने उसी साल एक स्टडी में कहा कि इसकी वजह से बिजली की डिमांड बढ़ी है. 


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