Yamuna Reached Red Fort: दिल्ली के लोगों ने हाल ही में यमुना नदी को लाल किले के पास बहते हुए देखा. यह नजारा मुगलकालीन युग की याद दिला रहा था. मुग़ल सम्राट शाहजहां ने अपने साम्राज्य की राजधानी अगरा से दिल्ली ले जाने का फैसला किया था. उसी विचार से लाल किले, जिसे किला-ए-मुबारक भी कहा जाता है, का निर्माण प्रारम्भ हुआ, जो लगभग 10 वर्षों तक चला. 1648 में, शाहजहां ने पहली बार यमुना नदी के किनारे स्थित इस किले में नाव में बैठकर उसी रास्ते से प्रवेश किया था, जिस परिसर में पिछले दिनों यमुना नदी को बहते हुए देखा गया था.
बहुत कम लोग जानते हैं 'यमुना द्वार' के बारे मैक
लाल किले में 'यमुना द्वार' नामक एक द्वार भी है. इसी द्वार से शाहजहां ने पहली बार लाल किले में प्रवेश किया था. यहां यमुना द्वार को 'खिजरी दरवाजा' भी कहा जाता है. लाल किले के लाहौरी गेट और दिल्ली गेट तो बहुत प्रसिद्ध हैं, लेकिन खिजरी दरवाजे के बारे में बहुत कम जानकारी होती है.
कुछ लेखकों का कहना है कि ये खिजरी द्वार का नाम पानी के संत कहे जाने वाले ख्वाजा खिज्र के नाम पर रखा गया था. कुछ लेखकों ने खिजरी द्वार को 'जलद्वार' के रूप में भी वर्णित किया है. अग्रा किला और पाकिस्तान में स्थित लाहौर किले के अलावा अन्य कई किलों में भी खिजरी द्वार या जलद्वार होते हैं.
जिस दरवाजे से शुरुआत हुई अंत भी वहीं से
लाल किले (दिल्ली) का खिजरी गेट विशेष द्वार था जो केवल मुगल शाही परिवार के वरिष्ठ सदस्यों के लिए ही था. इतिहासकारों के के अनुसार, खिजरी दरवाजे से अंतिम मुगल सम्राट बहादुर जफर द्वितीय भागते हुए निकला था. यह घटना 1857 की क्रांति के बाद हुई थी. तब बहादुर जफर द्वितीय ने हुमायूं के मकबरे तक पहुंचने के लिए खिजरी दरवाजे का उपयोग किया था. इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि उस द्वार से जहां मुगल सल्तनत दिल्ली की सत्ता का आधार स्थापित हुआ था, वहीं से उसके अंतिम वारिस की विचलनी भी हुई.
शाहजहां अक्सर यमुना में किया करते थे नौकायन
हिंदू में प्रकाशित आर.वी. स्मिथ की रिपोर्ट के अनुसार, मुग़ल सम्राटों का यमुना (तब जमुना) के साथ गहरा संबंध था. उन्होंने लिखा है, "गर्मी के दिनों में अकबर और जहांगीर यमुना के किनारे पर नाव बांधकर उसमें आराम किया करते थे. दिल्ली को राजधानी बनाने के बाद, शाहजहां अक्सर यमुना में नौकायन का आनंद लेते थे. रात में, उनकी हरम की रखैलें, राजकुमारियां और महानुभाव नौकायन और स्नान के लिए खिजरी दरवाजे से बाहर निकलती थीं."
पीने के लिए इस्तेमाल नहीं होता था यमुना का पानी
उस समय, नदी के किनारे ही मेले भी लगाए जाते थे. यहां हाथियों की कुश्ती भी होती थी और कई अन्य कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते थे. मुगल परिवार इन सभी का आनंद लाल किले की जगहों से लेते थे. हालांकि, मुगल सम्राट यमुना का पानी पीने के लिए उपयोग नहीं करते थे. वे अपनी पेय जल के लिए गंगा का पानी मंगवाते थे.
यह भी पढ़ें - हर ट्रेन के आखिरी डिब्बे पर X का निशान होता है, फिर वंदे भारत पर ये क्यों नहीं है?