दिल्ली एमसीडी चुनाव के लंबे समय बाद अब दिल्ली मेयर की कुर्सी पर चल रही खींचतान खत्म हो गई है. दरअसल, आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी डॉ. शैली ओबेरॉय को मेयर की कुर्सी मिली है और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी रेखा गुप्ता को हराया है. अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव करवाया गया है और आज शैली ओबेरॉय ने जीत हासिल की है. अब शैली ओबेरॉय कई साल बाद पूरी दिल्ली नगर निगम की मेयर होंगी, जबकि इससे पहले कुछ साल तक उत्तर, दक्षिण नगर निगम आदि के अलग अलग पार्षद होते हैं. 


ऐसे में शैली ओबेरॉय के कार्यभार संभालने से पहले आपको बताते हैं कि आखिर दिल्ली मेयर का कार्य होता और उन्हें इस काम के लिए कितनी सैलरी मिलती है. बता दें कि वैसे दिल्ली नगर निगम (डीएमसी) अधिनियम, 1957 के अनुसार, नगर निगम चुनावों के बाद सदन के पहले सत्र में मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव किया जाता है. लेकिन, इस बार लंबे समय बाद इस पद पर उम्मीदवार का चयन हुआ है. 


क्या होता ही दिल्ली के मेयर का काम?


मेयर दिल्ली नगर निगम का प्रमुख होता है, जो लोकल गर्वनमेंट बॉडी है. मेयर का काम निगम से जुड़ी मीटिंग करना, निगम का एजेंडा सेट करना और निगम के कार्यों के लिए दिशा निर्देश तैयार करना और पार्षदों को निर्देश देने का होता है. इन कार्यों में विकास कार्य करवाना, उनके लिए प्रोजेक्ट बनाना और शहर के इंफ्रास्टक्चर से लेकर पब्लिक हेल्थ, सफाई आदि पर काम करना होता है. इसके साथ ही मेयर निगम का अलग अलग जगह प्रतिनिधित्व करता है. इसके अलावा दिल्ली नगर निगम को मिलने वाले मोटे बजट का विभाजन भी दिल्ली के मेयर की ओर से किया जाता है.


कितनी होती है दिल्ली मेयर की सैलरी?


दिल्ली मेयर की सैलरी और अलाउंस निगम के पार्षदों की तरह ही होते हैं, लेकिन मेयर को पार्षद से अलग मीटिंग आदि का भत्ता मिलता है. पहले अलग अलग नगर निगम होने की वजह से मेयर भी अलग अलग थे और साल 2017 तक उन्हें 15000 से भी कम सैलरी मिलती थी. उस दौरान मेयर की सैलरी 15000 और 10 हजार रुपये भत्ते के रुप में देने की मांग की गई थी. इसके साथ ही नगर निगम की ओर से हर पार्षद के फंड को 1.5 करोड़ करने का प्रस्ताव किया गया था, लेकिन 2021 में दिल्ली सरकार ने इस पर रोक लगा दी थी. 


अब कई रिपोर्ट में कहा गया है कि पार्षदों को 41 हजार रुपये महीना या 4.9 लाख रुपये सलाना मिलते हैं. साथ ही कुछ भत्ते और विकास कार्य के लिए फंड मिलता है. इसके साथ ही कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि पार्षदों को सैलरी के स्थान पर बैठकों के पैसे आदि दिए जाते हैं. अगर मेयर की बात करें तो उनके भत्ते आदि ज्यादा होते हैं और लंबे समय बाद दिल्ली को एक मेयर मिला है. इससे मेयर के भत्तों या फंड आदि में बदलाव किया जा सकता है.


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