Delhi Odd-Even Formula: दिल्ली में लगातार बढ़ रहे पॉल्यूशन के बीच सरकार ने एक बार फिर ऑड-ईवन फॉर्मूला लागू करने का फैसला किया है. इसमें ऑड तारीख वाले दिन वही वाहन चलेंगे जिनका आखिरी नंबर ऑड होगा और इसी तरह ईवन वाली तारीख में ईवन नंबर के वाहनों को ही सड़कों पर उतरने की इजाजत होगी. इसी बीच हम आपको ये बता रहे हैं कि आखिर दिल्ली के प्रदूषण में वाहनों से निकलने वाले धुएं का कितना हिस्सा होता है और क्या वाकई में ऑड-ईवन फॉर्मूला कारगर है?


हवा को जहरीला करने में कौन ज्यादा जिम्मेदार?
सबसे पहले ये जान लेते हैं कि दिल्ली की हवा को जहरीला करने में कौन सी चीजों का सबसे बड़ा रोल होता है. डिसीजन सपोर्ट सिस्टम फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट दिल्ली (डीएसएस) के मुताबिक फिलहाल दिल्ली में मौजूद PM 2.5 में गाड़ियों से निकलने वाले धुएं का योगदान 18 फीसदी से ज्यादा है. शहरों में 20-30% पॉल्यूशन रोड ट्रांसपोर्ट के चलते फैलता है. इसके अलावा दिल्ली के पड़ोसी राज्यों में जलने वाली पराली का योगदान पीएम 2.5 में करीब 34 फीसदी तक रहता है. हालांकि ये रोजाना बदलता रहता है. 


इसके अलावा कंस्ट्रक्शन और सड़क पर उड़ने वाली धूल का भी प्रदूषण में योगदान रहता है. पॉल्यूशन में मौजूद पीएम 2.5 कणों को ही सबसे ज्यादा घातक माना जाता है, जो शरीर में आसानी से घुस जाते हैं और फिर बीमारियों का कारण बनते हैं. 


ऑड-ईवन का कितना असर?
दिल्ली में ट्रैफिक का जो हाल है, उसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां वाहनों की संख्या कितनी ज्यादा है. सड़क पर रोज लाखों वाहन उतरते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक रोजाना दिल्ली की सड़कों पर 1400 नई कारें उतरती हैं. इसी के चलते दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर ऑड-ईवन फॉर्मूला लागू किया जाता है. सबसे पहले 2016 में ये फॉर्मूला लागू हुआ. 


दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के मुताबिक ऑड-ईवन लागू होने के बाद पीएम 2.5 के लेवल में कमी देखी गई. इस दौरान पीएम 2.5 का लेवल करीब 5.73 फीसदी कम हुआ था. यानी सड़कों से करीब 30 या 35 फीसदी गाड़ियां कम होने से पॉल्यूशन के स्तर में थोड़ी कमी देखी जा सकती है. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर इस ऑड-ईवन वाले फॉर्मूले को सख्ती से लागू किया जाए, तभी इसका असर पॉल्यूशन पर दिख सकता है. 


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