फरलो पर बाहर आया गुरमीत राम रहीम, जानें ये क्या होती है और क्यों दी जाती है
डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख गुरमीत राम रहीम फिर 21 दिन की फरलो पर बाहर आ गया है. इस बीच चलिए जानते हैं कि आखिर ये फरलो होती क्या है और कब दी जाती है.
Gurmeet Ram Rahim Released: डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम एक बार फिर सुनारिया जेल से बाहर है. दरअसल गुरमीत राम रहीम को 21 दिनों की फरलो मिली है, जिसे लेकर खासी चर्चाएं हो रही हैं. राम रहीम अपनी दो अनुयायियों से बलात्कार और हत्या के आरोप में 20 साल की सजा काट रहा है और रोहतक जिले की सुनारिया जेल में बंद है. उसे 19 जनवरी को ही 50 दिन की पैरोल दी गई थी. गुरमीत राम रहीम को कई बार पैरोल और फरलो मिल चुकी है. अब उसे फिर फरलो मिलने पर सवाल उठ रहे हैं. इस बीच चलिए जानते हैं कि आखिर ये फरलो होती क्या है.
क्या होती है फरलो?
फरलो एक तरही की छुट्टी होती है जिसमें कैदी को कुछ दिन के लिए रिहा किया जाता है. फरलो को कैदी की सजा में छूट और उसके अधिकार के तौर पर देखा जाता है. फरलो सिर्फ सजा पा चुके कैदी को ही मिलती है. वो भी उन कैदियों को जिन्हें लंबे वक्त की सजा मिली हो. फरलो बिना किसी कारण भी दी जा सकती है. दरअसल इसका मकसद होता है कि कैदी समजा के लोगों और परिवार के लोगों से मिल सके, क्योंकि जेल राज्य का विषय है इसलिए हर राज्य में फरलो को लेकर अलग-अलग नियम हैं. देश के ही राज्य उत्तर प्रदेश में तो फरलो देने का कोई प्रावधान ही नहीं है.
कब नहीं मिलती फरलो?
सितंबर 2020 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पेरोल और फरलो को लेकर नई गाइडलाइन जारी की थी, जिसमें ये बताया गया था कि किसी कैदी को कब पैरलो और फरलो नहीं दी जाएगी. इसके अनुसार, वो कैदी जिनकी मौजूदगी समाज में खतरनाक हो या फिर जिनके होने से शांति व्यवस्था और कानून व्यवस्था बिगड़ने का डर हो उन्हें पैरोल या फरलो नहीं दी जानी चाहिए.
इसके अलावा ऐसे कैदी जो किसी तरह का हमला करने या फिर दंगा भड़काने, विद्रोह या फरार होने की कोशिश करने जैसी हिंसा से जुड़े अपराधों में शामिल हों, उन्हें रिहा नहीं किया जाना चाहिए. डकैती, आतंकवाद संबंधी अपराध, फिरौती के लिए अपहरण, मादक द्रव्यों की कारोबारी मात्रा में तस्करी जैसे गंभीर अपराधों के दोषी या आरोपी कैदी को रिहा नहीं किया जाना चाहिए. साथ ही वो कैदी जिनके पैरोल और फरलो की अवधि को पूरा करके वापस आने में संशय हो उन्हें भी रिहा नहीं किया जाना चाहिए. यौन अपराधों, हत्या, बच्चों के अपहरण और हिंसा जैसे गंभीर अपराधों के मामलों में एक समिति सारे तथ्यों को ध्यान में रखकर पैरोल या फरलो देने या नहीं देने का फैसला कर सकती है.
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