बैल हमेशा से ही इंसान के काम करते आया है. कड़ी मेहनत की जब भी बात आती है अक्सर बैल का उदाहरण दिया जाता है. लेकिन बात जब आक्रामकता और ताकत की आती है तो सांड का जिक्र सुनने को मिलता है. वैसे तो सांड और बैल दोनों ही गाय के बछड़े होते हैं, लेकिन दोनों एक दूसरे से काफी अलग होते हैं. बहुत से लोग इन दोनों के बीच अंतर नहीं जानते हैं. आइए आज जानते हैं कि आखिर एक ही जननी से जन्में बछड़े कैसे सांड और बैल दो अलग-अलग भूमिकाओं में आ जाते हैं.


बछड़ा ही बनता है बैल या सांड


दरअसल, इस सवाल का जवाब काफी रोचक है और उसके पीछे की वजह भी उतनी ही रोचक है. अपने स्वार्थ के लिए इंसान हमेशा से ही जानवरों का इस्तेमाल करता आया है. अपनी बुद्धि के दम पर उसने ताकतवर से ताकतवर और चालक से चालक जीव को भी अपने बस में कर लिया है. बैल और सांड के साथ भी यही कहानी जुड़ी है. गाय के नर बच्चे ही सांड़ और बैल दोनों भूमिका निभाते हैं.


इस तरह बछड़ा बनता है बैल


बछड़े को बैल बनाने के पीछे इंसान का स्वार्थ होता है. जब गाय किसी नर को जन्म देती है तो वह बछड़ा किसी काम का नहीं होता है. ऐसे में जब वह बड़ा होता है तो किसान इन बछड़ों को खेत जोतने के लिए हल में इस्तेमाल करते हैं. लेकिन, समस्या यह रहती है कि इन्हें काबू करना मुश्किल होता है. ऐसे में इन्हे कंट्रोल करने के लिए इंसान पुराने जमाने से ही एक तरकीब अपनाता आ रहा है. इंसान ने बछड़ों की जवानी को कुचलने का फैसला किया. जिससे उसकी आक्रामकता खत्म हो जाती है. इस प्रक्रिया को बधियाकरण कहते हैं.


क्या होता है बधियाकरण?


इस प्रक्रिया के तरह जब बछड़ा ढाई-तीन साल का होता है तो उसके अंडकोष को दबाकर नष्ट कर दिया जाता है. आजकल यह काम मशीनों से भी होता है, लेकिन पहले इसे बाकायदा कुचला जाता था. इस प्रक्रिया में बछड़े को बहुत ज्यादा दर्द का सामना करना पड़ता था. कई बार तो बधियाकरण के दौरान बछड़ा मार भी जाता था. मौत हो जाती थी. इस तरह बछड़े को पूरी तरह नपुंसक बनाया जाता है. सांड ऐसे बछड़े होते हैं, जिनका बधियाकरण नहीं हुआ होता है. ऐसे में बड़े होने पर यह बछड़ा ताकत से भरपूर होता है और आक्रामक होता है. 


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