Diwali 2024: कभी सोचा है कि दिवाली की रौनक बढ़ाने वाले रंग-बिरंगे पटाखे कहां से आए? इस दिलचस्प कहानी की शुरुआत प्राचीन चीन के एक रसोइए से होती है. दरअसल एक बार एक चीनी रसोइया खाना बना रहा था. खाना बनाते समय उसने गलती से कुछ ऐसे पदार्थों को मिला दिया जो आग पकड़ने वाले थे. कहा जाता है कि इस गलती के बाद एक छोटा सा धमाका हुआ और आसमान में रंग-बिरंगे चिंगारियां उड़ने लगीं. अनजाने में किए गए इस प्रयोग ने रसोइए को हैरान कर दिया और उसने इस घटना को गौर से देखा. इसके बाद उसने पाया कि कुछ खास पदार्थों को मिलाकर इस तरह की आवाज और रोशनी पैदा की जा सकती है.
कैसे हुई बारुद की खोज और आतिशबाजी का जन्म?
फिर क्या था? धीरे-धीरे रसोइए ने इस प्रयोग को दोहराया और इसमें सुधार करता गया, उसने अलग-अलग पदार्थों को मिलाकर अलग-अलग तरह की आवाजें और रोशनी पैदा की. इस तरह बारूद की खोज हुई. बारूद की खोज के बाद, लोगों ने इसे अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल करना शुरू किया. धीरे-धीरे, बारूद का उपयोग आतिशबाजी बनाने में होने लगा.
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भारत कैसे पहुंची आतिशबाजी?
आतिशबाजी का भारत में आगमन व्यापारिक मार्गों के माध्यम से हुआ. चीनी व्यापारी जब भारत आते थे, तो वो अपने साथ आतिशबाजी भी लाते थे. भारतीयों को आतिशबाजी बहुत पसंद आई और धीरे-धीरे यह हमारे त्योहारों का हिस्सा बन गई. खासतौर पर दिवाली के त्योहार पर आतिशबाजी का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है.
दिवाली और आतिशबाजी का संबंध
दिवाली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. आतिशबाजी को बुरी शक्तियों को दूर भगाने और नए साल की शुरुआत का स्वागत करने के लिए जलाया जाता है.. आतिशबाजी की चमक और आवाज से वातावरण में एक उत्सव का माहौल बन जाता है.
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आज के समय में आतिशबाजी
आजकल आतिशबाजी के कई प्रकार उपलब्ध हैं. पहले के समय में आतिशबाजी बहुत आम होती थी, लेकिन आजकल तकनीक के विकास के साथ आतिशबाजी में काफी सुधार हुआ है. अब आतिशबाजी में कई तरह के रंग, आकार और आवाजें होती हैं.
आतिशबाजी से जुड़ी परेशानियां
देखने में तो आतिशबाजी काफी अच्छी लगती है, लेकिन इससे कई तरह की परेशानियां भी जन्म लेती हैं. आतिशबाजी से निकलने वाला धुआं और ध्वनि प्रदूषण का कारण बनता है. इसके अलावा आतिशबाजी से कई बार एक्सीडेंट भी हो जाते हैं.
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