Diwali Owl: दिवाली पर क्यों होता है उल्लू का ज़िक्र? उल्लू से जुड़े इन नियमों को तोड़ने पर हो सकती है जेल!
दिवाली के आसपास उल्लू की डिमांड बढ़ जाती है. आइए जानते हैं उल्लू से जुड़ी कुछ खास बातें और नियम.
Diwali Owl: दिवाली प्रकाश का पर्व है. दिवाली (Diwali) के आने के साथ दियों, मिठाइयों, पटाखों, सोना, चांदी और नए कपड़ों सहित कई चीजों पर चर्चा शुरू हो जाती है. दिवाली पर उल्लू भी काफी चर्चा में रहता है. विश्व वन्यजीवन कोष (WWF) ने उल्लू को लेकर जागरुकता फैलाने और इसकी तस्करी को बंद करने की आवश्यकता बताई है.
दरअसल, दिवाली के त्योहार पर उल्लू एक अंधविश्वास की बलि चढ़ जाता है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने उल्लू की बलि को लेकर ही यह फैसला लिया है. तो आज हम आपको बताते हैं कि दिवाली पर उल्लू की चर्चा क्यों होती है. साथ ही उस कानून के बारे में भी जानेंगे, जिसमें उल्लू की बलि को लेकर सजा का प्रावधान है.
दिवाली पर उल्लू की चर्चा
दरअसल, दिवाली के त्योहार पर कई सारे उल्लू अंधविश्वास की भेंट चढ़ जाते हैं. भारत में उल्लुओं को लेकर यह अंधविश्वास फैला हुआ है कि अगर दीपावली के मौके पर इस पक्षी की बलि दी जाए तो धन-संपदा में वृद्धि होती है. ऐसे में कई लोग अपने इस अंधविश्वास के अधीन होकर उल्लुओं की बलि दे देते हैं, जिसके कारण हर साल काफी संख्या में इस प्रजाति को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है.
भारत में उल्लू
भारत में उल्लू की कुल 36 प्रजातियां पायी जाती हैं. इन सभी प्रजातियों को भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत शिकार, कारोबार या फिर किसी भी प्रकार के उत्पीड़न से संरक्षण प्राप्त है. उल्लू की कम से कम 16 प्रजातियों की अवैध तस्करी और कारोबार किया जाता है. इन प्रजातियों में से खलिहानों में पाया जाने वाला उल्लू, ब्राउन हॉक उल्लू, कॉलर वाला उल्लू, काला उल्लू, पूर्वी घास वाला उल्लू, ब्राउन फिश उल्लू, जंगली उल्लू, धब्बेदार उल्लू, पूर्वी एशियाई उल्लू, चितला उल्लू आदि शामिल हैं.
क्या कहता है कानून?
भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 को इसके जरिए देश के वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करने और अवैध शिकार, तस्करी और अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के लिए लागू किया गया था. इस कानून के में 66 धाराएं हैं और 6 अनुसूचियां हैं. इसकी अलग-अलग अनुसूचियों में अलग-अलग सजा का प्रावधान है. इसमें 10000 रुपये जुर्माना से लेकर 10 साल की सजा तक का भी प्रावधान है.
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