दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में अगर मेट्रो ना हो तो लोगों का जीना मुहाल हो जाएगा. लोग घंटों जाम में फंसे रहेंगे. इन्हीं सुविधाओं की वजह से अब मेट्रो में पहले के मुकाबले भीड़ ज्यादा बढ़ रही है. बढ़ती भीड़ की वजह से अब मेट्रो ट्रेनों का भी नवीनीकरण हो रहा है.


डीएमआरसी की बात करें तो आने वाले समय में वह दिल्ली मेट्रो की रेड और ब्लू लाइन पर चलने वाली 20 साल से अधिक पुरानी मेट्रो ट्रेनों का स्वरूप बदलने में लग गई है. चलिए अब आपको बताते हैं कि जब मेट्रो में नए आधुनिक कोच आ जाएंगे तो फिर पुराने कोच का क्या होगा.


क्या होता है पुराने कोच का?


जब मेट्रो के कोच पुराने हो जाते हैं तो उन्हें रिटायर कर दिया जाता है. इसके बाद उनकी नीलामी के लिए टेंडर निकाले जाते हैं. कई बार नीलामी बोली लगा कर भी होती है. इस बोली में जो लोग सबसे ज्यादा इन कोच की कीमत लगाते हैं, उन्हें आधिकारिक रूप से ये कोच सौंप दिए जाते हैं.


अब सवाल उठता है कि जो लोग मेट्रो के ये कोच खरीदते हैं वो इसका क्या करते हैं. दरअसल, भारत में मेट्रो या फिर ट्रेन के कोच का क्रेज काफी ज्यादा है. कई बार इन कोच का इस्तेमाल रेस्टोरेंट खोलने के लिए किया जाता है. कई बार, इनका इस्तेमाल म्यूजियम बनाने के लिए होता है. हालांकि, ज्यादातर इन कोच के अलग-अलग पार्ट को निकाल कर बाजार में ऊंची कीमतों पर बेच दिया जाता है. वहीं अंत में जो लोहा बच जाता है उसे पिघला कर उससे भी कीमत वसूल ली जाती है.


मेट्रो कोच की कीमत क्या होती है


साल 2021 में मॉर्डन कोच फैक्ट्री ने देश में मेट्रो के डिब्बे बनाने के बारे में विचार किया था. इन डिब्बों का निर्माण मेक इन इंडिया के तहत होना था. आपको बता दें, उस समय मेट्रो डिब्बों के निर्माण के लिए 150 करोड़ रुपये का टेंडर जारी किया गया था. दरअसल, पहले मेट्रो के डिब्बे चीन या फिर अन्य देशों से आयात किए जाते थे, इसकी वजह से इनकी कीमत बहुत ज्यादा होती थी. लेकिन जब से ये डिब्बे देश में बनने लगे हैं तब से इनकी कीमत पहले के मुकाबले लगभग 40 फीसदी कम हुई है.


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