सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक याचिका पर सुनवाई की, जिसमें जजों की पेंशन बढ़ाने की गुहार लगाई गई है. कोर्ट को बताया गया कि कुछ जजों को छह हजार से पंद्रह हजार तक की पेंशन मिल रही है जिस पर पीठ ने भी हैरानी जताई. न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति पीके मिश्रा और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ हाई कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है. इस सुनवाई में बताया गया कि हाईकोर्ट के जजों को 15 हजार रुपये पेंशन मिल रही है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट मामले में 27 नवंबर को फिर सुनवाई करेगा. ऐसे में सवाल ये उठता है कि किस नियम के तहतत हाईकोर्ट के जजों को पेंशन दी जाती है? चलिए जानते हैं.


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हाईकोर्ट के जजों को मिलती है कितनी पेंशन?


भारतीय न्यायपालिका का ढांचा पूरी दुनिया में एक मिसाल माना जाता है. ऐसे में यहां जजों के अधिकारी भी बहुत सम्मानजनक होते हैं. उच्च न्यायालय में जजों को उनके कार्यकाल के दौरान सैलरी भी अच्छी खासी मिलती है. ऐसे में सवाल हाल ही में दायर हुई याचिका में जजों की पेंशन को लेकर सवाल उठ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के जज भी हाईकोर्ट के जजों की पेंशन जानकर हैरान हैं. ऐसे में चलिए जानते हैं कि किस नियम के चलते हाईकोर्ट के जजों को सैलरी दी जाती है.


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किस नियम के तहत मिलती है हाईकोर्ट के जजों को पेंशन?


इसके पीछे मुख्य कारण भारतीय उच्च न्यायालयों से जुड़ा एक पुराना नियम है, जिसे "पेंशन और ग्रेच्युटी" व्यवस्था कहते हैं. इसके अंतर्गत एक रिटायर्ड जज को सीमित पेंशन और लाभ दिए जाते हैं. हालांकि यह कानून समय-समय पर संशोधित किए जाते हैं, लेकिन अब तक रिटायर्ड जजों को वह पेंशन नहीं मिल पाई है, जिसका वे हकदार होते हैं.


बता दें उच्च न्यायालय से रिटायर्ड जजों को मिलने वाली पेंशन राशि को लेकर भारत सरकार का आदेश 1954 से चला आ रहा है. इसके तहत जजों को पेंशन की एक निश्चित सीमा निर्धारित की गई है, जो वर्तमान में लगभग 15,000 रुपये प्रति माह बताई जाती है. यह राशि 1950 और 1960 के दशक की परिस्थितियों के हिसाब से तय की गई थी, जब महंगाई बहुत कम थी और जजों की पेंशन का स्तर भी काफी कम था. इसके अलावा, पेंशन की राशि पर जज की सेवा काल और सेवानिवृत्ति की उम्र का भी असर पड़ता है. एक उच्च न्यायालय के जज की औसत सेवा काल 15-20 वर्षों के आसपास होती है, जो कि काफी कम होता है. इस वजह से उन्हें दी जाने वाली पेंशन राशि को अधिक बढ़ाने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है, क्योंकि उनके द्वारा प्रदान की गई सेवाएं भी सीमित होती हैं.


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