अब तक आपने ब्लाइंडनेस और कलर ब्लाइंडनेस जैसी चीजें सुनी होंगी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्लांट ब्लाइंडनेस जैसी चीज भी होती है. दरअसल, यह शब्द खासतौर से उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिनकी पौधों के प्रति संवेदनशीलता खत्म होती जा रही है या फिर ऐसे लोग जो अब अपनी बालकनी में रखे गमलों में भी रुचि नहीं लेते हैं. यहां तक कि उन्होंने अलग-अलग तरह के पौधों को पहचानना भी बिल्कुल बंद कर दिया है. उनके अंदर नए पौधों के बारे में जानने की उत्सुकता भी खत्म होती जा रही है, वैज्ञानिक ऐसे लोगों को प्लांट ब्लाइंडनेस का शिकार कहते हैं.


लोगों को पौधों के प्रति जागरूक होना होगा


अगर आप पौधों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं तो फिर आप प्लांट ब्लाइंडनेस के शिकार माने जाएंगे. कई बार तो ऐसा होता है कि आप कुछ सुंदर पौधों के बगल से गुजर जाते हैं, लेकिन उन पर ध्यान तक नहीं देते हैं. यहां तक कि लोगों में जैवविविधता को लेकर जागरूकता भी बेहद कम रह गई है. सबसे गंभीर समस्या यह है कि लोग अब कई तरह के नए पुराने पौधों को पहचानना भी बंद कर चुके हैं. नई पीढ़ी को पौधों के बारे में जानकारी बेहद कम रह गई है, खासतौर से लोकल पौधों के बारे में.


पौधों से ज्यादा जानवरों में रुचि रख रहे हैं लोग


साल 1998 से लेकर 2020 तक के प्रकाशित हुए कई रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया कि धीरे-धीरे इंसानों की रुचि पेड़ पौधों से हटकर जानवरों की तरफ होने लगी है. लोग पहले जितना समय पेड़ पौधों के साथ देते थे अब वह उतना समय उनके साथ नहीं देते, बल्कि इसकी जगह वह जानवरों के साथ अपना समय बिताना पसंद करते हैं.


शहरों में रहने वाले लोग ज्यादा हैं प्रभावित


गांव में रहने वालों की अपेक्षा शहरों में रहने वाले लोग प्लांट ब्लाइंडनेस का शिकार ज्यादा रहे हैं. एक्सटर यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञान शिक्षा के विशेषज्ञ और इस रिसर्च के प्रमुख बेथन स्टैग का कहना है कि हाइटेक शहरों और देशों में रहने वाले लोगों में पौधों के प्रति ध्यान की कमी पाई गई है. यही वजह है कि ऐसे लोगों का पौधों के साथ जरूरी अनुभव कम होता जा रहा है और उनमें पौधों को देख कर उन्हें पहचानने की क्षमता खत्म होती जा रही है.


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