क्या आपको पता है चांद को मून क्यों कहते हैं? ऐसे पड़ा था इसका नाम
चांद को अंग्रेजी में मून कहा जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि चांद का नाम मून कैसे पड़ा था और इसके पीछे का कारण क्या है. जानिए चांद शब्द कहां से आया था? बाकी भाषाओं में इसे क्या कहते हैं.
आज से 55 साल पहले आज ही के दिन 1969 में पहली बार कोई इंसान चांद पर पहुंचा था. बता दें कि 1969 में 20 जुलाई के दिन अपोलो-11 यान चांद की सतह पर लैंड किया था. जिसके बाद पहली बार अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर पहला कदम रखा था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि चांद का नाम मून कैसे पड़ा था. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर चांद को मून क्यों कहा जाता है और इसका नाम कैसे पड़ा.
चांद पर इंसान
बता दें कि अमेरिका ने 16 जुलाई 1969 को बताया था कि उसका मिशन मून अपोलो-11 यान तीन अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर रवाना हो गया है. इसके बाद 20 जुलाई 1969 के दिन इतिहास रचते हुए नील आर्मस्ट्रांग और उनके साथी चांद पर पहुंच गए थे. 20 जुलाई 1969 को शाम ठीक 4:18 बजे अपोलो का ईगल चांद की सतह पर लैंड हो गया था. चांद पर पहुंचने के 5 घंटे बाद 10:39 pm पर अंतरिक्ष यात्री आर्मस्ट्रांग ने चांद पर पैर रखा था. इतिहास में पहली बार आर्मस्ट्रांग ही चांद पर पहला कदम रखने वाले इंसान हैं, इसके बाद इनके साथियों का नाम है.
चांद का नाम
भारत में चांद को धार्मिक रूप से भी देखा जाता है. भारतीय लोग अलग-अलग मौके पर चांद की पूजा-अर्चना करते हैं और चांद को भगवान का दर्जा देते हैं. इतना ही नहीं कई मौकों पर बच्चे चांद को मामा कहकर भी संबोधित करते हैं. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक समुद्र मंथन के समय समुद्र से बहुत सारे तत्व निकले थे, जिसमें मां लक्ष्मी और चंद्रमा भी थे। हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी को मां माना जाता है, इसलिए चांद को चंदा मामा कहा जाने लगा. वहीं एक दूसरा कारण यह भी माना जाता है कि हम धरती को अपनी मां मानते हैं. ऐसे में चांद हमेशा धरती के इर्द-गिर्द चक्कर लगाता है और इसके साथ रहता है. धरती के साथ रहने के कारण चांद को चंदा मामा कहा जाता है.
चांद का नाम मून
अब सवाल ये है कि आखिर चांद को मून क्यों कहा जाता है. बता दें कि चंद्रमा को अंग्रेजी में "द मून" कहते हैं. मून शब्द मूल रूप से प्रोटो-जर्मेनिक है, जो एक समान ध्वनि वाले शब्द से निकला है, जो कुछ हज़ार साल पहले उत्तरी यूरोप में इस्तेमाल में आया था. नासा की चंद्र विज्ञान वेबसाइट के मुताबिक जब तक गैलीलियो ने 1610 में यह नहीं खोजा था कि बृहस्पति भी एक ग्रह है. तब ये माना जाता था कि चंद्रमा ही एकमात्र चंद्रमा है, जो अस्तित्व में है.
नासा के मुताबिक जब अन्य चंद्रमाओं यानी ग्रहों को खोजो गया था, तो उन्हें अलग-अलग नाम दिया गया था. जिससे लोग उन्हें एक-दूसरे के साथ भ्रमित न करें. जानकारी के मुताबिक हम बाकी ग्रहों को भी चंद्रमा इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे ग्रहों की परिक्रमा उसी तरह करते हैं, जिस तरह चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है. बृहस्पति के 64 चंद्रमाओं में से चार सबसे बड़े चंद्रमा की खोज गैलीलियो ने 1610 में की थी. जिनके नाम आयो, यूरोपा, गेनीमीड और कैलिस्टो है.
ये भी पढ़ें: अपोलो-11 मिशन के दौरान चांद पर क्या-क्या छोड़ आए थे एस्ट्रोनॉट्स, देखिए पूरी लिस्ट