अगर हम कहें कि इस दुनिया में एक ऐसा वैज्ञानिक हुआ था, जिसने सांप के जहर का इलाज खोजने के लिए खुद अपनी जान दे दी तो आप क्या कहेंगे. दरअसल, हम बात कर रहे हैं डॉ. श्मिट की. जिन्होंने बूमस्लैंग सांप के जहर का एंटीडोट बनाने के लिए अपनी जान दे दी
क्या है डॉ. श्मिट की कहानी?
ये 1957 का दौर था...उस वक्त दुनियाभर में नई नई दवाईयों की खोज हो रही थी. लोग तमाम तरह के जहर का एंटीडोट तैयार कर रहे थे. उन्हीं कुछ लोगों में से एक थे अमेरिका के हर्पेटोलॉजिस्ट डॉक्टर कार्ल श्मिट. श्मिट दुनिया के कुछ सबसे जहरीले सांपों में से एक बूमस्लैंग का एंटीडोट बनाना चाह रहे थे. इसके लिए उन्होंने काफी प्रयास किया लेकिन जब अंत तक सफलता हाथ नहीं लगी तो उन्होंने वो फैसला किया जो मेडिकल की दुनिया में इतिहास बन गया. उन्होंने इस सांप के जहर की दवा बनाने के लिए इससे खुद को कटवा लिया. सांप के कटवाने के बाद उनके साथ जो जो भी हुआ उन्होंने अपने सारे अनुभव एक डायरी में लिखे. लेकिन अंत में सांप के काटने के एक दिन बाद उनकी मौत हो गई.
डायरी में उन्होंने क्या लिखा?
तारीख थी 25 सितंबर 1957. जगह शिकागो का नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम. डॉ. श्मिट ने बूमस्लैंग सांप से खुद को यहीं कटवाया और फिर जब तक वो होश में रहे उन्होंने अपने सभी अनुभव लिखे. उन्होंने अपनी डायरी में लिखा कि सांप के काटने के कुछ घंटे बाद उन्हें उल्टी जैसा महसूस हुआ. फिर शाम को उनको ठंड लगने लगी और रात होते होते उनका शरीर बुखार से तपने लगा. उन्होंने अपनी डायरी में लिखा कि जब वह रात में पेशाब करने उठे तो उनके बाथरूम में खून आने लगा.
यहां तक कि उनके मसूड़ों से भी खून आने लगा था. दूसरे दिन उनके मुंह और नाक से खून निकलने लगा. बाद में जब उनकी स्थिति बिगड़ी तो उन्होंने अपनी पत्नि को फोन कर के सारी बात बताई. पत्नि ने उनके लिए तुरंत आपात मदद मंगाई उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया लेकिन उनकी मौत हो गई. डॉक्टरों ने पोस्टमार्टम के बाद पाया कि सांप के जहर की वजह से डॉ. श्मिट के फेफड़ों, आंख, दिल, किडनी और दिमाग के भीतर खून रिसने लगा था, जिससे उनकी मौत हो गई.
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