आपने अक्सर सुना होगा कि शराब पीने से इंसान सच बोलने लगता है. यानी जो बातें वो आमतौर पर नहीं कह पाता, वो नशे की हालत में कह देता है. लेकिन क्या ये सच में सच है? आइए इस मिथक को समझते हैं और जानते हैं कि शराब का हमारे दिमाग पर क्या असर होता है.


शराब का दिमाग पर असर


शराब एक तरह का डिप्रेशन है जो हमारे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है. यह दिमाग के उन हिस्सों को प्रभावित करता है जो हमारे निर्णय लेने, भावनाओं को नियंत्रित करने और सोचने की क्षमता को प्रभावित करते हैं.


शराब से निर्णय लेने की क्षमता पर भी असर पड़ता है. शराब पीने से हमारी निर्णय लेने की क्षमता कम हो जाती है, ऐसे में हम सही और गलत में फर्क करना भूल जाते हैं. साथ ही इसे पीने के बाद भावनाओं पर भी असर पड़ता है और शराब पीने से हमारी भावनाएं बेकाबू हो जाती हैं. हम खुशी, दुख, गुस्सा, या किसी भी भावना को बहुत ज्यादा महसूस करने लगते हैं. इसके अलावा शराब पीने के बाद हमारी सोचने समझने की क्षमताओं पर भी असर पड़ता है. शराब पीने से हमारी सोचने की क्षमता कम हो जाती है और हम कठिन बातों को समझने में असमर्थ हो जाते हैं.


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क्या नशे में इंसान सच बोलता है?


यह मानना कि शराब पीने से इंसान सच बोलता है, एक मिथक है. शराब पीने से हमारी सोच और भावनाएं प्रभावित होती हैं, जिससे हम जो बोलते हैं, वो हमारी असल भावनाएं नहीं होतीं बल्कि वैसी लगती हैं. शराब पीने से लोग अक्सर बेबाक हो जाते हैं और ऐसी बातें कह देते हैं जो आमतौर पर सामान्य हालत में नहीं कहेंगे. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वो सच बोल रहे हैं.


बता दें शराब पीने से दबी हुई भावनाएं बाहर निकल आती हैं, लेकिन ये भावनाएं हमेशा सही नहीं होती हैं. नशे की हालत में कही गई बातों को सच मान लेना गलतफहमी है.


शराब पीने के नुकसान


शराब पीने के कई नुकसान हैं, जैसे शराब पीने से लीवर की बीमारी, दिल की बीमारी, कैंसर और कई अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. शराब पीने से पारिवारिक और सामाजिक संबंध खराब हो सकते हैं. साथ ही शराब पीकर गाड़ी चलाना या दूसरे अवैध काम करना कानूनी समस्याएं पैदा कर सकता है.              


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