क्या मरने से पहले चली जाती है बोलने की ताकत? जानिए क्या कहता है साइंस
हमने अक्सर देखा या सुना है कि मरते समय इंंसान के बोलने की ताकत चली जाती हैै. यदि कोई कोशिश भी करता है तो साफ शब्दों में नहीं बोल पाता. चलिए इसके पीछे की सच्चाई जानते हैं.

मरने से पहले अक्सर लोग यदि कुछ बोलने की कोशिश भी करते हैं तो बोल नहीं पाते. ऐसे में आमतौर पर समझा जाता है कि मौत के पहले लोगों के बोलने की ताकत चली जाती है. ऐसे में यदि मौत से पहले कोई बोलने की कोशिश भी करता है तो वो बोल नहींं पाता. कई बार या दो शब्द बोलने के बाद ही व्यक्ति की चेतना जवाब दे देती है. इसे लेकर कई जगहों पर प्रयोग भी हुए हैं हालांकि इसपर हाल ही में हुई स्टडी चर्चाओं में है.
आखिरी समय नहीं रह जाती कुछ बोलने की ताकत
अमेरिकी पत्रिका "अटलांटिक" ने कुछ समय पहले एक बड़ा लेख छापा था. जिसमें इस तरह के न जाने कितने ही उदाहरण दिए गए और कई अध्ययन का हवाला दिया गया है.
अधिकतर यही कहा गया है कि आखिरी समय में व्यक्ति की चेतना खत्म हो जाती है, उसमें कुछ बोलने की ताकत नहीं रह जाती. ऐसे में वो व्यक्ति अपने को लोगों से कटने लगता है. इस दौरान मरते हुए शख्स की भाषा क्या होती है, इस बारे में ज्यादा कुछ लिखा नहीं है. हालांकि मरने से पहले व्यक्ति की स्थिति क्या होती होगी इस बारे में हमेेशा से सवाल उठते आए हैं.
आखिरी शब्द पर रिसर्च बना हुआ है अब भी चुनौती
मरने के दौरान आमतौर पर जिस भाषा या शब्दों को बोला जाता है, उसे समझना आसान नहीं होता. हालांकि अस्पतालों में लंबी बीमारी से जो लोग मरते हैं, उनके आखिरी शब्दों और गतिविधियों को रिकार्ड कर पाना ज्यादा संभव हो पाता है. कई अध्ययन के बाद भी आखिरी शब्द अब भी एक चुनौती बने हुए हैं, जिसकी एक वजह ये भी है कि अब भी आखिरी समय में कोई नहीं चाहता कि मरणासन्न के बिस्तर के आसपास कोई वैज्ञानिक मौजूद रहे. वहीं जो रिसर्च सामने आई हैं उसमें ये कहा गया है कि मरने से पहलेे लोग अजीब बातें करने लगते हैं.
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