सिर्फ स्ट्रेस से नहीं, आपके शहर के पर्यावरण से भी पड़ रहा दिमाग पर असर! सिर में हो रहा ये बदलाव
जलवायु परिवर्तन के परिणामों को आज सारी दुनिया झेल रही है. लेकिन हाल ही में हुई एक स्टडी के परिमाण वाकई परेशान करने वाले हैं. दरअसल, स्टडी के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन का असर हमारे दिमाग पर हो रहा है.
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Climate Change: बीते दो दशकों में, जलवायु परिवर्तन और इसके पृथ्वी पर होने वाले नकारात्मक प्रभाव की चर्चा दुनियाभर में चरम पर है. अधिकांश देश इस समस्या का सामना करने के तरीकों पर निरंतर अनुसंधान, यानी रिसर्च कर रहे हैं. ग्रीनहाउस गैसों के निर्माण को कम करने के उद्देश्य से वैश्विक स्तर पर कदम उठाए जा रहे हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण, विश्वभर में मौसम अनैतिक ढंग से व्यवहार कर रहा है. अब एक नए अध्ययन में सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन इंसान के मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव डाल रहा है.
जलवायु परिवर्तन का दिमाग पर असर
कैलिफोर्निया के नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के वैज्ञानिक और शोधकर्ता जेफ मॉर्गन स्टिबल ने बताया है कि जलवायु परिवर्तन और इंसान के मस्तिष्क के आकार में कमी के बीच सीधा संबंध होता है. शोधकर्ता स्टिबल ने इस अध्ययन के लिए 10 प्रकाशित स्रोतों से मस्तिष्क के आकार के बारे में जानकारी इकट्ठा की. उन्होंने 50,000 साल तक की 298 इंसानी हड्डियों की 373 मापें लीं.
साइंस अलर्ट के मुताबिक, स्टिबल वैज्ञानिक ने इस अवधि के जलवायु रिकॉर्ड और मानव अवशेषों का अध्ययन किया. उनके विश्लेषण के अनुसार, पर्यावरणीय तनाव के समय मनुष्य पर कैसा प्रभाव पड़ता है, यह बताता है.
दिमाग हो रहा छोटा
शोध के आधार पर, इंसान के मस्तिष्क के आकार और व्यवहार पर जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव होता है. स्टिबल ने अपने अध्ययन में वैश्विक तापमान, आर्द्रता, और वर्षा के रिकॉर्ड को शामिल किया. अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार, गर्म जलवायु की अवधि में ठंडक के मुकाबले मस्तिष्क के औसत आकार में कमी देखी गई है. पिछले अध्ययनों ने भी इंसानी मस्तिष्क के आकार में गिरावट के संकेतों को प्रमाणित किया है और यह अध्ययन इसे और अधिक सत्यापित करता है. स्टिबल ने समय के साथ मानव मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तनों को समझने की आवश्यकता को उजागर किया है.
यह प्रोजेक्ट 8,00,000 साल से अधिक की सटीक तापमान मापन करता है. पिछले 50,000 साल में पृथ्वी पर कई जलवायु परिवर्तन देखे गए हैं, जिनमें लास्ट ग्लेशियल मैक्सिमम भी शामिल है. इस अवधि में तापमान काफी लंबे समय ठंडा रहता है, जो केवल आखिरी प्लीस्टोसीन युग तक होता है, जिसके बाद होलोसीन काल में औसत तापमान में वृद्धि हुई.
अभी और गहन अध्ययन की जरूरत
स्टिबल ने इस दिशा में हो रहे कम अध्ययनों के साथ काफी निराशा व्यक्त की है. उनके मुताबिक, हमें अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए समय के साथ मानव मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तनों को समझने की आवश्यकता है. इससे हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को और अच्छी तरह से समझने में मदद मिलेगी.
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