पहले दिल्ली के इस छोटे से पार्क में होती थी बीटिंग रिट्रीट, जानिए उस वक्त कैसा होता था नजारा
गणतंत्र दिवस के बाद तीसरे दिन हर साल बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम का आयोजन किया जाता हैै. इस साल ये कार्यक्रम बेहद खास होने जा रहा है.
हर साल गणतंत्र दिवस के तीसरे दिन आयोजित होने वाले बीटिंग रिट्रीट को देखने कई लोग पहुंचते हैैं. जिसे 1950 से रिपब्लिक डे सेलिब्रेट किया जाता रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि बीटिंग रिट्रीट को 1952 में सेलिब्रेट किया जाना शुरू किया गया था. उस समय ये सेरेमनी दिल्ली के कनाट प्लेस के एक छोटे से पार्क में आयोजित की जाती थी. तो चलिए आज बीटिंग रिट्रीट केे इतिहास पर एक नजर डालते हैं.
क्या है बीटिंग रिट्रीट का इतिहास
कहा जाता है बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी 17वीं शताब्दी में शुरू हुई थी. उस दौर में जब दिन में लड़ाई खत्म हो जाती थी उस समय सेनाएं बिगुल बजाया करती थीं. जिसका नाम बीटिंग रिट्रीट रखा गया था. इस रिवायत को ब्रीटिश सेना ने शुरू किया था जिसे बाद में भारतीय फौज नेे भी अपना लिया.
1960 तक कैसे होती थी बीटिंग रिट्रीट
1960 के दशक तक बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी बहुत व्यापक स्तर पर नहीं होती थी. 1952 में शुरू हुई इस सेरेमनी में भारतीय सेना के तीनों अंगों के बैंड दिल्ली के विजय चौक के अलावा कनॉट प्लेस में देशभक्ति की धुन बजाकर ये सेरेमनी मनाते थे. हालांकि उस समय कनॉट प्लेस का भी पूरा एरिया कवर करकेे इस सेरेमनी को आयोजित नहीं किया जाता था, बल्कि वहां की रीगल बिल्डिंग के सामने एक छोटे से पार्क में इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता था. अब उस जगह पर पार्किंग बन गई है. बीटिंंग रिट्रीट की जब शुरुआत हुई थी उस समय एलबी गुरुंग, एएफएस रीड, एच जोसेफ, बचन सिंंह जैसे सेना के संगीतकारों के नेतृत्व में देशभक्ति की धुनें बजाई जाती थीं.
कैसे बदला बीटिंग रिट्रीट का स्वरूप
बीटिंग रिट्रीट सेेरेेमनी पहली बार 1961 में भव्य रूप से आयोजित की गई थी. दरअसल इस साल गणतंत्र दिवस समारोह में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ मुख्य अतिथि थीं. जिसके चलते इस सेेरेमनी का भव्य आयोजन किया गया. इस साल महारानी एलिजाबेथ नेे दिल्ली के रामलीला मैदान में जनता को संबोधित भी किया था. वहीं इसके बाद इस कार्यक्रम को इसी तरह मनाया जाता रहा जो 2016 में बदला और अब इसमें सेना के अलावा पुलिस भी शामिल हो गई है. वहीं अब इसमें बॉलीवुुड संगीत का तड़का भी लगनेे लगा है.
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