तकनीक के मामलों में दुनिया आज बहुत आगे है. लेकिन क्या आप कभी सोचते हैं कि जब तकनीक नहीं था, उस वक्त लोग कैसे जीवन जीते थे ? किसी भी महिला के लिए मां बनना सबसे बड़ा सपना होता था. आज गर्भावस्था का पता लगाने के लिए महिलाएं सीधे दुकान से किट लाकर पता कर सकती हैं. लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि कैसे पहले लोग मेंढ़क के जरिए पता करते थे कि महिला गर्भवती है या नहीं.
मेंढक में यूरिन इंजेक्ट
तकनीक के इस युग में गर्भावस्था का पता लगाने के लिए बाजार में बहुत सारे विकल्प मौजूद हैं. इन विकल्प के जरिए कुछ मिनटों में ये पता लगाया जा सकता है कि कोई महिला प्रेग्नेंट है या नहीं. लेकिन पहले के समय एक और विधि थी. जिसको हॉगबेन परीक्षण कहा जाता है, ये बहुत पुरानी तकनीक थी. इस विधि में महिलाओं के मूत्र को एक सिरिंज से मादा मेंढक की त्वचा में इंजेक्ट किया जाता था. इसके बाद यदि कोई महिला गर्भवती है, तो 5-12 घंटों के बाद मेंढक एक छोटे से आकार का सफेद अंडा पैदा करेगा. इस परीक्षण के परिणामों पर बिना शर्त विश्वास किया जाता था.
बता दें कि साल 1940 के दशक से 1970 के दशक के बीच इस जांच के लिए अस्पतालों ने बड़ी संख्या में मेंढकों का आयात किया था. इस जांच के लिए बुफो प्रजाति के टोड(एक किस्म का मेढ़क) का भी इस्तेमाल होता था. इस कारण बुफो टेस्ट जैसा एक नाम प्रचलन में आया था. इस दौरान लाखों की तादाद में मेंढक मारे गए थे.
ऐसे परीक्षण सिर्फ मेंढकों के ही ऊपर नहीं किए जाते थे. जानकारी के मुताबिक 1927 में चिकित्सकों बर्नार्ड सोंडेक और सेल्मर एशहाइम ने एक पद्धति का अभ्यास किया था. इस दौरान उन्होंने खरगोशों का उपयोग करने का सुझाव दिया था. इसमें मां के पेशाब को सिरिंज से मादा खरगोश के शरीर में इंजेक्ट किया जाता था. जिसके बाद अगले कुछ दिनों तक उसकी यौन गतिविधियों पर नजर रखी जाती थी. जिससे डॉक्टर परिणाम घोषित करते थे.
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