भारत और पाकिस्तान के बीच एक वक्त ऐसा ही रहा है जब दोनों देशों का व्यापार एक ही करंसी से होता था. दरअसल बात बंटवारेे के कुछ वक्त बाद की है. हम आज के समय में अंदाजा भी नहीेंं लगा सकते कि उस समय का कैसा मंजर रहा होगा. एक अलग देश पाकिस्तान बन तो गया था, लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था चलाने के लिए उसकेे पास अपनी कोई मुद्रा नहींं थी. ऐसे में पाकिस्तान ने भारत से मदद मांगी.


जब भारत नेे दी पाकिस्तान को करेंसी
पाकिस्तान ने ऐसी स्थिति में भारत से मदद मांगी. उस समय एक आदेश भी जारी किया गया जिसमें भारतीय नोटों को ही चलाने का आदेश दिया गया. उसके बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान की मदद की और अपनी करेंसी उसे दी. इसी के सहारे पाकिस्तान सरकार अपने कामकाज कर पाई और यही वो दौर था जब भारत और पाकिस्तान में एक ही करेंसी से सारे कामकाज चल रहे थे. हालांकि पाकिस्तान सरकार ने भारत से मिली करेंगी में कुछ बदलाव किए थे.


भारत से मिली करेंसी पर पाकिस्तान ने क्या करवाया
भारत से पाकिस्तान को करेंसी तो मिल चुकी थी, लेकिन उसपर कोई पाकिस्तानी मुहर नहीं थी. ऐसे में उसने उन नोटों पर तीन उर्दू शब्द और लिखवा दिए. दरअसल भारत से मिले नोटों पर ऊपर कुछ जगह खासी सफेद जगह थी. जहां पाकिस्तान ने 'गवर्नमेंट ऑफ पाकिस्तान' प्रिंट करा दिया था. फिर जब तक पाकिस्तान के पास नोट छापने की मशीन का जुगाड़ नहीं हुआ तब तक उसका काम इन्हीं नोटों से चला.


बता दें आज भी स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के म्यूजियम में यही 10 रुपए और 100 रुपए के नोट रखे हैं. साथ ही वहां लिखा हुआ है, 1947 में भारत के बंटवारे के समय भारतीय रिजर्व बैंक अविभाजित भारत के केंद्रीय बैंक के रूप में काम कर रहा था.                                     


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