ये जीव इंसानों की तरह करते हैं सर्जरी, जान बचाने के लिए काट देते हैं टांग
इन जीवों पर गहराई से रिसर्च करने के लिए उनके घोंसले को लैब में रखा गया. दरअसल, शोधकर्ता ये पता लगाना चाह रहे थे कि आखिर इन्हें पता कैसे चलता है कि इलाज के लिए साथी की टांग काटनी होगी.
अगर इंसान का कोई अंग सड़ जाता है या उसमें इंफेक्शन हो जाता है, जिसकी वजह से पूरे शरीर को खतरा होता है तो डॉक्टर सर्जरी द्वारा उस अंग को काट कर निकाल देते हैं. ये एक कठिन प्रक्रिया होती है, इंसानों को इसे सीखने और समझने में सदियों लग गए.
लेकिन हाल ही में एक खोज के दौरान पता चला कि इस दुनिया में एक छोटा सा ऐसा जीव मौजूद है जो हमेशा से इलाज की इस पद्धति को अपनाता आया है. चलिए इसके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं.
कौन सा है वो जीव
जर्मनी की वुर्त्सबुर्ग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक रिसर्च के दौरान पाया कि धरती पर पाई जाने वाली कुछ चींटियां भी इंसानों की तरह सर्जरी करना जानती हैं. दरअसल, रिसर्च के दौरान शोधकर्ताओं ने देखा कि भूरे और लाल रंग की ‘फ्लोरिडा कारपेंटर' प्रजाति की चींटियां अपने घायल साथियों की जान बचाने के लिए उनकी टांग काट दे रही हैं.
शोधकर्ताओं ने जब इनके घोंसलों पर रिसर्च किया तो देखा कि वहां मौजूद कुछ चींटियां बाकी की चींटियों का इलाज कर रही थीं. इलाज कर रही चींटियां पहले घाव को अपने मुंह से साफ कर रही थीं और उसके बाद शरीर के सड़े हुए अंगों को बेहद सावधानी से काट कर अलग कर दे रही थीं.
सेना में डॉक्टर चींटियों की अहम भूमिका
शोधकर्ताओं नें जब इन चींटियों पर रिसर्च किया तो पाया कि यह चींटियां एक कॉलोनी में रहती हैं. सड़ी लकड़ी में अपना घर बनाने के साथ-साथ इन चींटियों का एक समूह उसकी रक्षा करता है. अगर दुश्मन ने उनके घोंसले पर हमला किया तो सैनिक चींटियां लड़ने के लिए आगे आ जाती हैं.
अगर युद्ध में फ्लोरिडा कारपेंटर प्रजाति की कोई चींटी घायल हुई तो इसी प्रजाति की डॉक्टर चींटियां तुरंत इलाज के लिए मोर्चा संभाल लेती हैं. वुर्त्सबुर्ग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने जब इस तरह का सिस्टम देखा तो वह हैरान रह गए. उनका मानना था कि इंसानों के अलावा फ्लोरिडा कारपेंटर चींटियां ऐसा सबसे सटीक तरीके से कर रही थीं.
चींटियों को कैसे पता चलता है कि अब अंग को काटना है
चींटियों पर और गहराई से रिसर्च करने के लिए उनके घोंसले को लैब में रखा गया. दरअसल, शोधकर्ता ये पता लगाना चाह रहे थे कि आखिर चींटियों को ये पता कैसे चलता है कि उनके साथी का इलाज करने के लिए उसके किसी अंग को काटना ही होगा. वैज्ञानिकों ने देखा कि चींटियां ऐसा करने के लिए दो चीजें देखती थीं.
अगर किसी चींटी की टांग के निचले हिस्से पर चोट लगी है और चींटियों के शरीर से निकलने वाले एक खास तरह के नीले-हरे रंग के द्रव्य का बहाव तेज है तो ये मान लिया जाता है कि अब टांग काटने से कुछ नहीं होगा, मौत पक्की है. लेकिन अगर चोट टांग के ऊपरी हिस्से पर लगी है और द्रव्य का बहाव कम है तो चींटियां उसका इलाज करने के लिए साथी की टांग को काट देती हैं.
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