भारत में कोई महिला गर्भपात करवाना चाहती है तो उसे पहले नियमों को जानना जरुरी है. किसी भी महिला का गर्भपात नियमों के दायरे में रहकर ही किया जा सकता है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि भारत में गर्भपात के क्या नियम हैं.


भारत में गर्भपात के नियम


भारत में गर्भपात पर नियम मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट, 1971 के तहत लागू होते हैं, जिसे समय-समय पर संशोधित किया गया है. 2021 में, इस कानून में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए थे, जिससे गर्भपात की सुविधा को आसान बनाया गया है. इन नियमों के अंतर्गत सिर्फ एक सर्टिफाइड डॉक्टर ही अबॉर्शन कर सकता है.


वहीं यदि प्रेगनेंसी से महिला के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा है या भ्रूण (Fetus) के किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित होने की आशंका हो, या डिलीवरी होने से फिजिकली समस्या होने पर अबॉर्शन की अनुमति मिल सकती है. ऐसी स्थिति में 2 डॉक्टर गर्भवती महिला का चेकअप करते हैं और ये तय करते हैं कि गर्भपात करना सेफ है या नहीं. इसके अलावा रेप पीड़िता, नाबालिग, मानसिक या शारीरिक रूप से बीमार महिलाओं को 20-24 हफ्ते के बीच अबॉर्शन कराने की अनुमति मिलती है.


कब कराया जा सकता है सुरक्षित गर्भपात 


यदि 24 सप्ताह बाद एक मेडिकल बोर्ड ये डिसाइड करता है कि क्या इस प्रेगनेंसी को हम सेफली टर्मिनेट कर सकते हैं. इसके लिए कोई ठोस कारण हो, जिसे मेडिकल बोर्ड अप्रूव करता होसेफ अबॉर्शन 9 वीक तक हैइसके बाद 12 हफ्ते से 20 हफ्ते की प्रेगनेंसी को भी सेफली अबॉर्शन कराया जा सकता है. ऐसी स्थिति में कॉम्प्लीकेशन्स कम होते है.


बता दें मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत 20 सप्ताह तक की प्रेगनेंसी को अबॉर्ट कराया जा सकता है. वहीं यदि मां या फीटस की जान को खतरा है या कोई असामान्य परिस्थिति है तो ऐसी स्थिति में 24 सप्ताह से अधिक के गर्भपात की अनुमति दी जाती है.                                                                                                                                                              


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