Chandragupta Maurya :जानिए क्या होता है सल्लेखना का मतलब, जिसके जरिए चन्द्रगुप्त मौर्य ने त्यागे थे अपने प्राण
Sallekhana In Jainism: हर धर्म की अपनी विशेषताएं रही हैं जिनके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है. ऐसी ही एक विशेषता है जैन धर्म की जिसमें सल्लेखना विधि का खास महत्व है.
Jainism: हमारे देश में अलग-अलग धर्म और उनकी परंपराएं हजारों सालों से चली आ रही हैं. हर धर्म की अपनी विशेषताएं रही हैं. जिनके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है. ऐसी ही एक विशेषता है जैन धर्म की जिसमें 'सल्लेखना विधि' का खास महत्व है. अपने इस आर्टिकल के जरिए हम आपको सल्लेखना का मतलब और इसका ऐतिहासिक महत्व बताएंगे-
क्या है सल्लेखना-
जैन दर्शन के इस शब्द में दो शब्द 'सत्' और 'लेखन' आते हैं. जिसका शाब्दिक अर्थ है अच्छाई का लेखा-जोखा करना. जैन दर्शन में सल्लेखना शब्द उपवास के जरिए किसी व्यक्ति के द्वारा अपने प्राण त्यागने को लेकर आया है. सल्लेखना विधि का विचार जैन धर्म में आने के पीछे खास महत्व है.
इसके तहत घोर अकाल,बुढ़ापा, और रोग की ऐसी स्थिति आ जाए जिसका कोई निवारण ना हो सके तो धर्म का पालन करते हुए सल्लेखना विधि के जरिए व्यक्ति को अपने प्राण त्याग देने चाहिए.सुख के साथ और बिना किसी दुख के मृत्यु को धारण करने की प्रक्रिया ही सल्लेखना है. इसके तहत पालन करने वाला व्यक्ति अन्न-जल का पूरी तरह से त्याग कर देता है.
चन्द्रगुप्त मौर्य ने त्यागे थे प्राण-
मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य ने सल्लेखना विधि के जरिए अपने प्राण त्यागे थे.कर्नाटक स्थित श्रावणबेलगोला में उन्होंने अन्न-जल त्याग कर सल्लेखना विधि का पालन किया था. गौरतलब है कि उस वक्त उत्तर में स्थिति उनके साम्राज्य में अकाल पड़ा था.
अशोक के समय मौत की सजा पाए अपराधी अपनाते थे सल्लेखना-
अशोक के स्तंभ लेखों में भयंकर अपराधियों को भी यह प्रक्रिया अपनाने की व्यवस्था प्रशासनिक तौर पर की गई. दिल्ली के पुराने किले में स्थित सम्राट अशोक के स्तंभ के चतुर्थ लेख में इस बात का बकायदा उल्लेख आया है. इसके तहत सम्राट मौत की सजा पाए कैदियों को मृत्युदंड की तारीख निर्धारित हो जाने पर विशेष छूट देता था.
ताकि अपना परलोक सुधारने के लिए दान दे सकें,उपवास करके आत्मशुद्धि कर सकें और धर्म ध्यान कर सकें.अशोक चाहते थे कि मृत्युदंड पाया व्यक्ति अपरोध बोध से ग्रस्त होकर अपना शरीर ना त्यागे.
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