सोने का भाव हर साल बढ़ता है, यही वजह है कि लोग अब गोल्ड में इनवेस्ट करना ज्यादा फायदे का सौदा समझते हैं. हालांकि, गोल्ड इतना महंगा है कि इसे खरीदने के लिए आपके पास ढेर सारे पैसे होने चाहिए. लेकिन क्या हो अगर सोना आपके ही जमीन के नीचे दबा हो. कई बार ऐसा होता है. चलिए आज इस आर्टिकल में आपको बताते हैं कि जमीन के नीचे दबे सोने के बारे में कैसे पता लगाया जाता है. इसके लिए किन मशीनों का इस्तेमाल होता है.


जीपीआर और वीएलएफ तकनीक


जमीन के नीचे किसी भी धातु का पता दो तरह से लगाया जा सकता है. इसमें पहला तरीका है जीपीआर यानी ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार तकनीक और दूसरा तरीका है वीएलएफ यानी वेरी लो फ्रीक्वेंसी तकनीक. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीमें इन्हीं की मदद से जमीन के अंदर सोना या किसी भी धातु का पता लगाती हैं. आपको बता दें, ASI यानी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया भारत के संस्कृति मंत्रालय से जुड़ी एक भारतीय सरकारी एजेंसी है और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया GSI भारत की एक वैज्ञानिक एजेंसी है. ये भारत सरकार के खान मंत्रालय के तहत गठित एक सरकारी संगठन है.


कैसे काम करती हैं ये दोनों तकनीकें


जीपीआर यानी ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार, एक ऐसा तरीका है जिसमें मिट्टी की हर परत की जांच होती है और इसी जांच के आधार पर तय किया जाता है कि इस मिट्टी के नीचे कौन-कौन से धातु हो सकते हैं. वहीं वीएलएफ यानी वेरी लो फ्रीक्वेंसी एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से पता लगाया जाता है कि जमीन के अंदर सोना, चांदी या तांबा है या नहीं. दरअसल, जब वीएलएफ को जमीन पर लगाया जाता है तो यह उस जमीन के हिस्से के आसपास एक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड बना देता है. फिर मशीन से निकलने वाली तरंगें धातु से टकरा कर एक खास तरह की आवाज करती हैं.


उस आवाज के ही आधार पर पता चलता है कि जमीन के नीचे कौन सा मेटल है. हालांकि, भारत में अगर आपको आपकी जमीन के नीचे दबा सोना या खजाना मिलता है तो आपको सबसे पहले इसकी सूचना संबंधित अधिकारियों को देनी होती है. अगर आपने ऐसा नहीं किया तो ये एक तरह का अपराध है और आप पर इसके लिए कार्रवाई भी हो सकती है.


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