दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में कितनी कम है न्यूनतम मजदूरी? आंकड़े देखकर सिर पकड़ लेंगे आप
निर्माण, खनन और कृषि जैसे औपचारिक काम करने वालों को केंद्र सरकार ने बड़ी राहत दी है. सरकार ने इन क्षेत्र के लोगों की न्यूनतम मजदूरी बढ़ा दी है.
केंद्र सरकार निर्माण, खनन और कृषि जैसे अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए बड़ा ऐलान किया है. दरअसल सरकार ने इन क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने का फैसला किया है. 1 अक्टूबर से ये लागू कर दी जाएगी. गौरतलब है कि जहां औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में 2.40 अंकों की बढ़ोतरी हुई है.
वहीं संशोधन के बाद निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले अकुशल श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी 783 रुपये प्रतिदिन (20,358 रुपये प्रति माह) रखी गई है. साथ ही अर्ध-कुशल श्रमिकों के लिए ये 868 रुपये प्रतिदिन (22,568 रुपये प्रति माह) वेतन तय किया गया है. कुशल, लिपिक और बिना हथियार वाले चौकीदारों के लिए ये 954 रुपये प्रतिदिन (24,804 रुपये प्रति माह) होगा. बढ़ती महंगाई में कम मजदूरी से लोगों को जीवन यापन करना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि बाकी देशों के मुकाबले भारत में मजदूरी कितनी कम दी जाती है.
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बाकि देशों के मुकाबले भारत में दी जाने वाली न्यूनतम मजदूरी
भारत में न्यूनतम मजदूरी राज्यों के अनुसार अलग-अलग होती है, लेकिन औसतन ये लगभग 176 रुपये प्रतिदिन है. यह आंकड़ा दुनिया के कई विकसित देशों के मुकाबले बेहद कम है. उदाहरण के लिए, अमेरिका में न्यूनतम मजदूरी लगभग $7.25 प्रतिदिन है, जबकि यूरोपीय संघ के देशों में यह $10 से लेकर $15 प्रति घंटा तक है. ऐसे में भारत की मजदूरी दर वैश्विक मानकों के मुकाबले काफी पीछे है.
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विश्व के दूसरे देशों में कितनी है न्यूनतम मजदूरी
जहां ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों से तुलना की जाए तो ऑस्ट्रेलिया मेंन्यूनतम मजदूरी लगभग $19.84 प्रति घंटे है, जो कि भारतीय मजदूरी से लगभग 10 गुना ज्यादा है. वहीं जर्मनी में न्यूनतम मजदूरी लगभग $11.36 प्रति घंटा है. वहीं फ्रांस में मजदूरी दर लगभग $11.16 प्रति घंटा है.
इन आंकड़ों से ये साफ होता है कि बाकि देशों के मुकाबले हम न्यूनतम मजदूरी के मामले में काफी पीछे हैं. हालांकि भारतीय मजदूर संघ और दूसरे संगठनों ने न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि की मांग की थी, जिसके बाद भारत सरकार ने इसे बढ़ाने का फैसला किया है.
साल में दो बार होता है संशोधन
गौरतलब है कि केंद्र सरकार VDA साल में दो बार संशोधित करती है. ये 1 अप्रैल और 1 अक्टूबर से प्रभावी होता है. बता दें यह संशोधन औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 6 महीने की औसत वृद्धि पर आधारित होता है.
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