जीवन में गुरु का महत्व सबसे ऊपर है. गुरु पूर्णिमा के दिन आध्यात्मिक और शैक्षिक गुरुओं के सम्मान में गुरु पर्व मनाया जाता है. सभी इंसानों के जीवन निर्माण में गुरुओं की अहम भूमिका होती है. लेकिन आज हम आपको प्राचीन भारत के गुरुकुल शिक्षण संस्थानों के बारे में बताएंगे, जहां पर गुरु अपने शिष्यों को धर्मशास्त्र की शिक्षा देते थे. 


गुरु पूर्णिमा


गुरुपूर्णिमा का पर्व जीवन में गुरु के लिए कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मनाया जाता है. आज यानी 21 जुलाई के दिन पूरे देश में गुरु पूर्णिमा मनाया जा रहा है. हिंदुओ की परंपरा के मुताबिक आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है.


अब सवाल है कि गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है. बता दें कि लगभग 3000 ई.पूर्व पहले आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था. वेद व्यास जी के सम्मान में हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का दिन बनाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन वेद व्यास जी ने भागवत पुराण का ज्ञान भी दिया था. गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है. 


भारत में गुरुकुल शिक्षा


भारत में गुरुकुल शिक्षा का बहुत प्राचीन इतिहास रहा है. इतिहास के पन्नों को पलटने के बाद पता चलता है कि गुरुकुल शिक्षा प्रणाली और गुरु-शिष्य परम्परा का अपना एक स्वर्णिम गौरवशाली इतिहास रहा है. प्राचीन भारत में ऐसे प्रसिद्ध गुरुकुल थे, जहां पर शिक्षा के साथ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी पुरुषार्थों को अधिग्रहण करने के लिए संस्कार एवं शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता था. गुरुकुल के आचार्य का लक्ष्य व्यक्तित्व बेहतर करने के साथ एक अच्छे समाज का निर्माण करना भी था.


प्राचीन शिक्षा


बता दें कि प्राचीन समय की शिक्षा पद्धति तीन भागों में बंटा था. संस्कृत के इस श्लोक में मातृदेवो भवः, पितृदेवो भवः, आचार्य देवो भवः कहा गया है. जन्म के बाद प्रथम माता के प्रभाव से प्राप्त होने वाले शिक्षा एवं संस्कार है. द्वितीय पिता के प्रभाव से प्राप्त होने वाले शिक्षा एवं संस्कार है. वहीं तीसरा आचार्य यानी गुरु के प्रभाव से प्राप्त होने वाले शिक्षा एवं संस्कार है. 


तक्षशिला गुरुकुल 


तक्षशिला भारत का सबसे प्राचीन गुरुकुल था. यहां चाणक्य जैसे महान राजनीतिज्ञ एवं कौमारजीव जैसे शल्य चिकित्सक गुरु स्वरूप में थे. इस गुरुकुल में 18 विद्याएं विशेष रूप से अर्थशास्त्र राजनीति और आयुर्वेद के अध्ययन के लिए देश-विदेश से शिक्षार्थी आते थे. इस विश्वविद्यालय का जिक्र माइथोलॉजी में भी मिलता है. कहा जाता है कि इसकी नींव श्रीराम के भाई भरत ने अपने पुत्र तक्ष के नाम पर की थी. इस विश्वविद्यालय को गांधार नरेश का राजकीय संरक्षण मिला हुआ था और राजाओं के अलावा आम लोग भी यहां पढ़ने आते थे. इस गुरुकुल के अवशेषों में एक महान् समृद्धशाली सभ्यता निहित है.


नालन्दा गुरुकुल


नालन्दा विश्व ज्ञानपीठ गुरुकुल ने सम्पूर्ण दुनिया को भारतीय ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, कला एवं सभ्यता संस्कृति से परिचित कराया था. चीनी स्नातक ह्वेनसांग के मुताबिक नालन्दा में 10,000 से अधिक शिक्षार्थी थे. इस गुरुकुल में गुरुजनों की संख्या 1,500 थी और गुरुकुल में मुख्य गुरु शीलभद्र थे. ये गुरुकुल इतना विशाल था कि इसमें तीन विशाल पुस्तकालय, जिनमें विविध विषय के ग्रन्थ थे. नालंदा दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था, यानी गुरुकुल था. नालंदा को तक्षशिला के बाद दुनिया का दूसरा सबसे प्राचीन गुरुकुल माना जाता है.


गुरुकुल


भारत में गुरुकुल का इतिहास युगों पुराना है. हिंदू शास्त्रों के मुताबिक भगवान श्रीराम भी अपने अनुज भ्राताओं के साथ महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल में रहकर शिक्षा ग्रहण किया था. वहीं भगवान् श्रीकृष्ण ने बलराम जी और सुदामा जी के साथ महर्षि संदीपनी के गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण किया था. इसके अलावा कौरव और पाण्डवों ने भी महर्षि द्रोणाचार्य के गुरुकुल में रहकर विद्यार्जन किया था. श्रीकृष्ण ने राजनीति शास्त्र, कूटनीति, अर्थशास्त्र, नैतिक शिक्षा, धर्म, कर्म, मोक्ष, न्याय दर्शन आदि विषयों की शिक्षा ग्रहण की थी, जिससे श्रीकृष्ण आगे चलकर युग पुरुष सिद्ध हुए थे. भारत में गुरुकुल शिक्षा का एक स्वर्णिम इतिहास है. 


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