रेडलाइट एरिया अधिकांश परिवार ये शब्द सुनकर कान बंद कर लेते हैं. अगर कभी बात करते भी हैं तो घर के बच्चों के सामने तो ऐसे शब्दों से परहेज ही करते हैं. लेकिन सच ये है कि भारत समेत दुनियाभर के तमाम देशों में वेश्यावृत्ति एक बड़ा सच है. हर साल लाखों लड़कियां-महिलाओं को इस गुमनामी और बदनामी के दलदल में ढेकला जाता है. लेकिन आज हम भारत नहीं आपको अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के रेडलाइट एरिया के बारे में बताने वाले हैं. पाकिस्तान के इस रेड लाइट इलाके का इतिहास पाकिस्तान बनने और भारत की आजादी से बहुत पहले मुगल दौर का है.
हीरामंडी
सोशल मीडिया के जरिए आपने अभी तक हीरामंडी का नाम सुन ही लिया होगा. क्योंकि फिल्ममेकर संजय लीला भंसाली अपने नए प्रोजेक्ट को लेकर चर्चा में हैं. वह पाकिस्तान की हीरामंडी पर 'हीरामंडी: द डायमंड बाजार' वेब सीरीज बना रहे हैं. संजय लीला भंसाली जब कोई फिल्म बनाते हैं, तो वो अक्सर चर्चा में रहती ही है. लेकिन आज फिल्म नहीं हीरामंडी के इतिहास के बारे में बताएंगे.
हीरामंडी नाम कैसे पड़ा?
अधिकांश लोग हीरामंडी नाम सुनकर सोचते हैं कि कभी यहां पर हीरों का व्यापार होता था. लेकिन ये सच नहीं है. बीबीसी उर्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1799 में लाहौर पर महाराजा रणजीत सिंह का राज हुआ करता था. महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में उनके करीबी लोगों में राजा ध्यान सिंह डोगरा का नाम शामिल था. उनके सबसे बड़े बेटे का नाम हीरा सिंह डोगरा था. जो बाद में सिख राज के लाहौर एरिया के प्राइम मिनिस्टर बने थे. साल 1843 से 1844 के बीच अपने करीब 1.2 साल के राज में उन्होंने अनाज मंडी बनाया था, जिसे हीरा दी मंडी कहा जाने लगा, फिर धीरे-धीरे इसका नाम हीरामंडी ही पड़ गया था.
शाही मोहल्ला
दुनियाभर में हीरामंडी को रेड लाइट एरिया के रूप में जाना जाता है. लेकिन इतिहास के पन्नों में झांकने पर पता चलता है कि मुगलों के समय यहां का दृश्य कुछ और ही था. बता दें कि हीरा मंडी लाहौर के टक्साली गेट के पास स्थित है. ये दरवाजा मुगल बादशाह अकबर द्वारा बनाए गए 13 दरवाजों में एक है. आज का रेड लाइट मुगलों के वक्त का शाही मोहल्ला था. क्योंकि मुगल दौर में यहां पर अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान से महिलाओं को लाया जाता था. जो अपनी कला के माध्यम से मुगल शासकों के दरबारों में नृत्य-संगीत करती थी. इतना ही नहीं इस मोहल्ले में मुगल परिवार के बच्चों को कला और संस्कृति सीखने के लिए भेजा जाता था. यहीं कारण है बाद में इस इलाके को शाही मोहल्ला कहा जाता था.
ब्रिटिश शासनकाल
ब्रिटिश शासनकाल जब देश में आया तो हीरामंडी की चमक भी गायब हो गई. उस वक्त के अंग्रेज अफसरों ने तवायफों को प्रॉस्टिट्यूड का नाम देना शुरू कर दिया. अंग्रेजों ने जबरदस्ती तवायफों को सेक्स वर्कर बनने पर मजबूर कर दिया. इसके बाद नतीजा ये हुआ कि आज तक इस इलाके को रेड लाइट ही कहा जाता है.
हीरामंडी में आज भी होता है सिर्फ मुजरा
हीरामंडी को भले ही आज दुनिया में रेडलाइट एरिया कहा जाता है. लेकिन आज भी वहां पर कुछ कोठे ऐसे बचे हुए हैं, जहां पर महिलाएं सिर्फ मुजरा करती हैं, वो जिस्मफरोशी का धंधा नहीं करती हैं. हालांकि इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि हीरामंडी में कुछ महिलाएं पेट पालने के लिए जिस्मफरोशी का धंधा भी करती हैं.
पाकिस्तानी राइटर फौजिया सईद ने भी अपनी किताब 'टेबो: द हेडन कल्चर ऑफ ए रेड लाइट एरिया' में हीरामंडी के बारे में लिखा है. उन्होंने लिखा कि हम उनके बारे में केवल यही सोचते हैं कि वो सिर्फ सेक्स वर्कर थे. पहले मैंने भी ये ही सोचा था, लेकिन जब मैंने वहां जाकर देखा तो मैं चौंक गई थी, क्योंकि ये साहित्य का केंद्र था. हीरामंडी ने जाने-माने लेखकों, शायरों, कलाकारों को जन्म दिया है.